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प्रमाप्रमेयम्
[१.९७
वचोगुम्फविशेषोऽयं वक्तुरभ्याससंभवी।
तत्त्वनिर्णयकर्तृणां न तस्यैवोपयोगिता ॥ ७८ ॥ [९७. नियतार्थवादः] नियतार्थ उच्यते।
हेतुदृष्टान्तदोषेषु प्रतिज्ञातैकदोषतः । नियतार्थः प्रतिज्ञातकक्षायां भगवाहनम् ॥ ७९ ॥ प्रातिभे नियतार्थे वा जयः स्यान्नियमोक्तितः ।
नियमस्य विधातेन भङ्गो वादिप्रवादिनोः ॥ ८० ॥ [९८. परार्थनवादः] परार्थन उच्यते ।
प्रतिवाद्यानुलोम्येन भूपसभ्यार्थनेन वा।
परार्थनो भवेद् वादः परस्येच्छानुवर्तनात् ॥ ८१ ॥ mmmmmmmmmmmmmmmmm विषय का पद्य में वर्णन करना, ललित विषय का गद्य में वर्णन करना, दो भाषाओं के मिश्रण से रचना करना आदि प्रकारों की स्पर्धाएं राजसभाओं में प्रायः होती थीं)! नियतार्थ वाद
अब नियतार्थ वाद का वर्णन करते हैं । हेतु अथवा दृष्टान्त के दोषों में किसी एक दोष (को बतलाने ) की प्रतिज्ञा करने पर उस प्रतिज्ञा की परािध में (प्रतिपक्षी की बात को) निरस्त करना यह नियतार्थ वाद है (प्रतिपक्षी का हेतु असिद्ध बतला कर मैं उसे पराजित करूंगा अथवा विरुद्ध बतला कर पराजित करूंगा इस प्रकार नियम कर के उसी के अनुसार प्रतिपक्षी को उत्तर देना यह नियतार्थ वाद का स्वरूप है ) । प्रातिभ बाद में तथा नियतार्थ वाद में नियम के अनुसार बोलने पर वादी-प्रतिवादी का विजय होता है तथा नियम तोडने पर पराजय होता है । परार्थन वाद
___ अब परार्थन वाद का वर्णन करते हैं । प्रतिवादी के अनुरोध को स्वीकार करने से अथवा राजा या किसी सभासद के निवेदन पर जो वाद
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