________________
- १.१०८ ]
वाद और जल्प
९७
विधीयत इति चेन्न । तदुद्भावने पराजयस्यावश्यंभावित्वेन तत्प्रयोगाप्रयोगात् । ननु अनुद्भावने साम्यं भविष्यतीति धिया प्रयुज्यत इति चेन्न । सत्साधनदूषणापरिज्ञानात् तदाभासप्रयोगोद्भावनस्य च वादेऽपि समानत्वात् । इत्यतिव्यापकं जल्पस्य लक्षणम् । किं च ' वर्जनोद्भावने चैषां स्ववाक्यपरवाक्ययोः' इत्यभिधानात् तद्वर्जनस्यैव विधानं न तत्प्रयोगस्य । ननु परवाक्ये तदुद्भावनान्यथानुपपत्तेः जल्पे तत्प्रयोगोऽस्तीति चेन्न । सत्साधन दूषणापरिज्ञानात् तत्प्रयोगस्य वादेऽप्यविशेषात् ॥ [१०८. वादजल्पयोः अभेदः ]
तस्मात् सम्यक् साधनदूषणवत्वेन वादान्न भिद्यते जल्पः । तद्
पर जब प्रतिवादी उस का दूषित स्वरूप स्पष्ट करता है तब पराजय निश्चित होता है अतः छल आदि के प्रयोग का विधान ठीक नहीं है । यदि प्रतिवादी दोष न बता सके तो वादी प्रतिवादी में समानता सिद्ध होगी इस इच्छा से छल आदि का प्रयोग किया जाता है यह कथन भी उचित नहीं । उचित साधन तथा दूषण न सूझने पर साधनाभास तथा दूषणाभास का प्रयोग करना तथा उन्हें बतलाना बाद में भी समान रूपसे पाया जाता है | अतः यह जल्प का लक्षण अतिव्यापक है ( उस में वाद का भी समावेश हो जाता है ) । ' अपने वाक्यों में छल आदि को टालना चाहिए तथा दूसरे के वाक्यों में इन दोषों को पहचान कर प्रकट करना चाहिए इस कथन से भी छल आदि को टालने का ही विधान मिलता है उन के प्रयोग करने का नहीं । यदि प्रतिपक्षी के वाक्य में छल आदि न हों तो उन्हें पहचानना संभव नहीं, किन्तु जल्प में प्रतिपक्षी के वाक्य में ये दोष पहचानने का विधान हैं, अतः जल्प में इन का प्रयोग भी होता है यह कथन भी उचित नही । उचित साधन और दूषण न सूझने पर साधनाभास -दूषणाभासों का प्रयोग समान रूप से बाद में भी पाया जाता है ( अतः इसी कारण से वाद से जप को भिन्न बतलाना संभव नहीं है ) . ।
"
-
वाद और जल्प में भेद नहीं है
उपर्युक्त प्रकार से जल्प में भी उचित साधनों और उचित दूषणों का ही प्रयोग होता है अतः वह वादसे भिन्न नहीं है। इसी तरह वादवितण्डा भी जल्प
प्र. प्र.७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org