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-१.११६]
जल्प के लक्षण का विचार
१०७.
रतसद्भावेऽपि वादच्य पदेशाभावात । अथ पक्षप्रतिपक्षपरिग्रहेण सत्साधादूपणपन्यारेन च वादिप्रतिवादिनोः विचारो वाद इति चेन्न । लक्षण स्त्रे तथाविधविशेष णाभावात् । तस्मात लक्षण सूत्रमेतदयुक्तम् ।। [११६. जल्पलक्षणविचारः ] __जल्पलक्षणेऽपि हलजातिनिग्रहस्थानसाधनोपालम्भ इत्यसंगतम् । तेषां साधनदूषणसामर्थ्यायोगात् । तथा हि। छलादयो न साधनसमर्थाः साधनाभासत्वात् दूषणाभासवत । नोपालग्भसमर्थाश्च दूषणाभासत्वात् कल्पितचौर्यवत । आभासलादयः असत्साधनदृषणत्वात् तद्वत् । असत्साधन दूषणास्ते सत्साधन दृषणयोरपीटतत्वात् अन्यतरपक्षनिर्णयाकारकत्वाच्च श्रद्धाशापादिवत् । ततो जल्पलक्षणसूत्रमपि युक्त्या न संभाव्यते ॥
कि जल्प और वितण्डा में एसा विचार होने पर भी उन्हें वाद नही कहा जाता । पक्ष और प्रतिपक्ष का ग्रहण कर के उचित साधनों और दूषणों को प्रस्त्त करते हुए वादी और प्रतिवादी जो विचार करते हैं उसे वाद कहा जाता है यह कथन भी उचित नहीं क्यों कि वाद के लक्षण के सूत्र में ऐसे विशेषण नहीं दिये गये हैं । अतः यह लक्षण-सूत्र अयोग्य है । जल्प के लक्षण का विचार
जल्प के लक्षण में उसे छल. जाति निग्रहस्थान इन साधनों ब दृषणों से संपन्न कहा है यह अनुचित है क्यों कि छल आदि में साधन या दूषण का सामर्थ्य नहीं हो सकता। छल आदि दूषणाभास के समान (स्वपक्ष के) साधन में समर्थ नहीं हो सकते क्यों कि वे साधनाभास हैं । छल आदि (प्रतिपक्ष के) दूषण में भी समर्थ नहीं हैं क्यों कि वे कल्पित चोरी के समान दूषणाभास हैं । छल इत्यादि आभास हैं क्यों कि वे कल्पित चोरी के समान सत् साधन या सत् दूषण नहीं हैं । श्रद्धा अथवा शाप के समान छल आदि भी सत-साधनों व सत्-दूषणों में समाविष्ट नहीं हैं तथा किसी एक पक्ष का निर्णय भी नहीं करा सकते अतः वे सत-साधन या सत्-दूषण नही हैं । इस प्रकार जल्प के लक्षण का सूत्र भी युक्ति संगत नहीं है।
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