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- १.११४] भिन्न प्रकार से पांच अवयवों का विचार
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चादिभ्यां पक्षप्रतिपक्षपरिग्रहेण क्रियमाणस्य विचारस्यैव वादव्यपदेशात् । किं च । अनुमानस्यापि अवयवैरुपपन्नत्वाङ्गीकारे प्राक्तनाशेषदोषः प्रसज्यते ॥
[ ११४. प्रकारान्तरेण पञ्चावयवविचारः ]
ननु पक्षसाधनं प्रतिपक्षसाधन दूषणं साधनसमर्थनं दूषणसमर्थनं शब्ददोषवर्जन मिति अवयवाः पञ्च तैरुपपन्नो वाद इति चेन्न । पक्षसाधनादीनां वाक्यत्वेन शब्दरूपत्वात् प्राक्तनाशेषदोषानतिवृत्तेः । किं च । चादिना सत्साधनोपन्यासे प्रतिवादिनः सदूषणोद्भावनासंभवेन तुष्णभावे अथवा प्रतिवाद्युद्भाषिता सवण परिहारेण प्रतिवादिनः तूष्णींभावेऽपि पञ्चकस्यानुपपत्तेः कथं तदुपपन्नत्वं वादस्य । अथवा प्रतिवादिना सदूषणोद्भावने वादिनः साधनसमर्थनाभावेन प्रतिवादिना स्वपक्षे
हुआ संपूर्ण दोष ( कि प्रतिज्ञा आदि वाक्य होने से अवयव नहीं हो सकते ) प्राप्त होता है ( अतः अनुमान अथवा वाद अवयवों से उपपन्न होता है यह कथन ठीक नहीं है ) |
भिन्न प्रकार से पांच अवयवों का विचार
अपने पक्ष को सिद्ध करना, प्रतिपक्ष की सिद्धि में दूषण बतलाना, ( अपने ) साधन का समर्थन करना, ( प्रतिपक्ष के ) दूषण का समर्थन करना तथा शब्द के दोषों को टालना ये पांच अवयव हैं, इन से वाद संयुक्त होता है यह कथन भी ठीक नहीं । पक्ष का साधन आदि यें पांच अवयव भी वाक्यही हैं अतः शब्दों से बने हैं अतः पूर्वोक सभी दोष यहां भी दूर नही होता ( इन वाक्यों को भी अवयव नहीं कहा जा सकता ) । दूसरी बात यह है कि जब वादी उचित साधन प्रस्तुत करता है तथा प्रतिवादी उचित दूषण बतलाना संभव न होने से चुन रहता है, अथवा प्रतिवादी द्वारा बताये गये झूठे दूषण को दूर करने पर जब प्रतिवादी चुन रहता है तब भी (उस बाद में) ये पांच अत्रयव नहीं हो सकते (केवल पक्षसावन यह एकही अवयव होगा अथवा पक्षसाधन, प्रतिपक्ष दूषण तथा दूष गपरिहार ये तीन ही अवयव होंगे ) अतः -वाद पांच अवयवों से संयुक्त कैसे होगा । अथवा प्रतिवादी के उचित दूषण बतलाने पर जब वादी अपने पक्ष का समर्थन नहीं कर पाता तथा प्रतिवादी
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