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-१.१०४]
वाद और जल्प
[१०३. वादजल्पौ]
साधनं दूषणं चापि सम्यगेव प्रयुज्यते ।
पक्षवैपक्षयोर्यस्मिन् स वादः परिकीर्तितः॥९८ ॥ यस्मिन् विचारे पक्षविपक्षयोर्यथाक्रमम् सम्यक्साधनदूषणे एव प्रयुज्यते स विचारो वाद इति परिकीर्त्यते । उक्तो वादः । इदानीं जल्प उच्यते ।
सम्यगेव तदज्ञाने तदाभासोऽपि युज्यते ।
पक्षवैपक्षयोर्यत्र स जल्पः परिभाष्यते ॥९९ ॥ यत्र विचारे पक्षविपक्षयोर्यथाक्रमं सम्यगेव साधनदूषणे प्रयुज्येते, तयोरपरिज्ञाने साधनदषणाभासावपि प्रयुज्यते स विचारो अल्प इति ' परिभाष्यते ॥ [१०४. कथाचतुष्कम् ]
उक्तो जल्पः । इदानीं तयोः वितण्डे उच्यते । विपक्षस्थापनाहीनी वादजल्पो प्रकीर्तितौ । वितण्डे इति शास्त्रेषु न्यायमार्गेषु सबुधैः ॥ १०० ॥
वाद और जल्प
जिस में पक्ष में और विपक्ष में योग्य साधनों और योग्य दृषणों काही प्रयोग किया जाता है उसे वाद कहते हैं। अर्थात जिस विचारविमर्श में अपने पक्ष में योग्य साधनों का ही प्रयोग किया जाता है तथा प्रतिपक्ष में योग्य दूषण ही दिये जाते हैं उसे वाद कहा जाता है । इस प्रकार वाद का वर्णन हुआ। जल्प का वर्णन करते हैं । जिस में पक्ष और विपक्ष में योग्य साधनों और योग्य दूषणों का ही प्रयोग किया जाता है किन्तु उन योग्य साधन-दूषणों का ज्ञान न होने पर साधनाभास तथा दूषणाभास का भी प्रयोग होता है उसे जल्प कहते हैं । अर्थात जिस विचारविमर्श में अपने पक्ष में योग्य साधनों का ही प्रयोग किया जाता है किन्तु योग्य साधन न सूझने पर साधनाभास का भी प्रयोग किया जाता है तथा प्रतिपक्ष में योग्य दूषण ही दिये जाते हैं किन्तु योग्य दूषण न सूझने पर दूषगाभास भी प्रयुक्त किये जाते हैं उसे जल्प कहा जाता है । कथा के चार प्रकार
ऊपर जल्प का वर्णन किया । अब उन दोनों (वाद और जल्प) की
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