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वक्तुः अभिप्रेतं छलवारी तुजवण्यावच्छिकम्बललम्वन्धित्वमदेय असंभवेन न्यषेधीत् कुतोऽस्य नव कम्बला इति । तने में पृच्छेत् । अनेकदा विशेष कुतो व्यवासीः त्वमिति । न कुतश्चित् । तत्तदोवाच योजशब्दस्य वाय सोऽयी संभाव्यते। तन्मध्ये कनममर्थम् अविवक्षोः त्वमिति वक्तारं पृच्छेत् । पश्चात् विपश्चित् तत्रिश्चित्य तमभ्यनुजानीयात् तदुपरि दूषणं वा दद्यात् । नो चेदभिप्रतापरिज्ञानेन निहः प्रसज्यते ॥
[ ४७. सामान्यच्छलम् ]
सामान्य छल
हेतुत्वकारणत्वाभ्यां विकल्य प्रतिषेधनम् ।
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वाक्ये संभाव्यमानाथै सामान्य छलमुच्यते ॥ ९ ॥ ब्राह्मणचतुर्वेदाभिज्ञः इति समासः प्रत्यपीपत् । तत्र छलवादी प्रत्यवा
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यह श्रीमान प्रतीत होता है । वहां छल का प्रयोग करनेवाला आक्षेप करता है कि इस के पास नौ कम्बल कहां से हो सकते हैं ( एकही कम्बल है ) । वहां पहले बोलनेवाले के मन में नवकम्बलव का अर्थ नये कम्बल से युक्त 'होना यह है | छलवादी ने नौ संख्या से युक्त कम्बलों से युक्त होने की कल्पना कर के और उसे असंभव बतला कर उस का निषेध किया । ऐसे छलवादी को इस प्रकार प्रश्न करे कि अनेक अर्थों के वाचक इस (नत्र ) शब्द का यह विशिष्ट अर्थ (नौ) तुमने कैसे जाना । इस का कोई साधन नहीं है । अतः अनेक अर्थों के वाचक शब्द का प्रयोग करने पर इस शब्द के इतने अर्थ हो सकते हैं इन में से तुम्हें कौनसा अर्थ विवक्षित है ऐसा वक्ता को पूछना चाहिए, फिर बुद्धिमान व्यक्ति उस का निश्चय कर के उसे स्वीकार करे अथवा उस में दूषण बताये । नहीं तो अभिप्रेत अर्थ को न समझने का दोष प्राप्त होता है ।
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सामान्य छल
वाक्य में जहां संभावना का अर्थ व्यक्त करना हो वहां उस में हेतु अथवा कारण होने की कल्पना कर के निषेध करना सामान्य छल कहलाता है । जैसे- किसी समझदार ने कहा कि ब्राह्मण चार वेदों को जानता है । वहां छल का प्रयोग करनेवाला आक्षेप करता है कि ब्राह्मण होना चार वेदों
.प्र.प्र.४
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