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प्रमाप्रमेयम्
[१.४५-.
[४५. हला
सामाद दूषणाद् यस्मात् न स्यात् पक्षस्य निश्चयः। तयं न्यतरस्यासी तदाभासः प्रकीत्यते ॥५॥ हल यस्तदामासाः तदधिज्ञानाद ऋते न च । वजारभाव नपा स्वधावयपरचाक्ययोः ॥६॥ तता तेऽपि निरः बन्ले बालानां प्रतिबुद्धये। आपद्यार्थान्तरं वाक्यविधातः छलमुच्यते ॥ ७ ॥
तय वाक्लं सामान्यलमुपचारलमिति त्रिविधम् ॥ [४६. वाक्छलम्]
अनेकवाचके शब्दे प्रयुक्ते ऋजुवादिना ।
वक्तुर्मनास्वादन्यस्य प्रतिषेधो हि वाक्छलम् ॥ ८ ॥ उदाहरणम्-आढ्योऽयं नवकरबलत्वात् इति समजसोऽब्रवीत् । तत्र छलवादी प्रत्याख्यत् कुतोऽस्य नव कम्बला इति । प्रत्यग्रकम्बलसम्बन्धित्वं
जिस साधन से व दृषण से दो पक्षों में एक का निश्चय न हो वह साधनाभास व दूषणाभास कहलाता है | छल इत्यादि ये साधनाभास व दूषणाभास हैं, उनको जाने विना अपने वाक्यों से उन्हें दूर रखना और प्रतिवादी के वाक्यों में उन्हें पहचानना संभव नहीं है । अतः अज्ञानी शिष्यों को समझाने के लिए उन का भी वर्णन करते हैं।
(वक्ता के इष्ट अर्थ को छोड कर) दूसरे ही अर्थ की कल्पना कर के बात काटना यह छल कहलाता है । इस के तीन प्रकार हैं - वाक्छल, सामान्यछल तथा उपचारछल । वाकछल
सम्ल भावना से युक्त वादी द्वारा अनेक अथों के वाचक किसी शब्द का प्रयोग किये जाने पर उस के मन में विवक्षित अर्थ ( को छोड कर उस) से भिन्न अर्थ ( की कल्पना कर के उस ) का निषेध करना वाक्छल है । उदाहरण--किसी समझदार ने कहा कि इस व्यक्ति का कम्बल नव है अतः
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