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- १.३१]
अनुमान के आभास त्याभावस्तर्हि तस्याभासत्वं कौतस्कुतमिति चेत् प्रतिवाद्यसिद्धाप्रमादवस्वात्। साध्यविकलादिदृष्टान्ताभासाश्च व्याप्तिरहिताः। तद् यथा। अनिश्चितपक्षवृत्तिः हेतुरसिद्धः। पक्षविपक्षयोरेव वर्तमानो हेतुः विरुद्धः । पक्षत्रयवृत्तिहेतुः अनैकान्तिकः। प्रतिवादिप्रसिद्धसाध्ये प्रयुक्तो हेतुरकिंचित्करः। अनिश्चितव्याप्तिकः पक्ष एव वर्तमानो हेतुः अनध्यवसितः। बाधितसाध्ये पक्षे प्रयुक्तो हेतुः कालात्ययापदिष्टः। स्वपरपक्षसिद्धावपित्रिरूपो हेतुःप्रकरणसमः ॥ [३१. असिद्धभेदाः]
तत्रासिद्धभेदाः। पक्षेऽविद्यमानो हेतुः स्वरूपासिद्धः, अनित्यः शब्दः चाक्षुषत्वात् प्रदीपवत् । भिन्नाधिकरणे प्रयुक्तो हेतुः व्यधिकरणासिद्धः,
प्रमादपूर्ण ( दोषपूर्ण ) न होना प्रतिपक्षी के लिए असिद्ध है (प्रतिपक्षी उस हेतु में दोष बतला सकता है अतः उसे हेतु का आभास कहा है)। साध्यविकल आदि दृष्टान्ताभास भी व्याप्ति से रहित होते हैं (इन का आगे वर्णन करेंगे)। (हेत्वाभासों के लक्षण ) इस प्रकार हैं - जिस हेतु का पक्ष में अस्तित्व निश्चित नहीं हो वह असिद्ध होता है। जो हेतु पक्ष में तथा विपक्ष में ही हो (सपक्ष में न हो) वह विरुद्ध होता है । जो हेतु तीनों पक्षों में (पक्ष सपक्ष तथा विपक्ष में) हो वह अनैकान्तिक होता है। प्रतिवादी के लिए जो साध्य पहले ही सिद्ध होता है उस के विषय में प्रयुक्त हेतु अकिंचित्कर होता है । जो हेतु पक्ष में ही हो किन्तु जिस की व्याति अनिश्चित हो वह अनध्य. वसित होता है । जिस पक्ष में साध्य का अस्तित्व बाधित है उस के विषय में प्रयुक्त हेतु कालात्ययापदिष्ट होता है । जिस हेतु के तीनों रूप ( पक्ष में अस्तित्व, सपक्ष में अस्तित्व, विपक्ष में अभाव ) अपने पक्ष के तथा प्रतिपक्ष के - दोनों के सिद्ध करने में प्रयुक्त होते हैं वह प्रकरणसम होता है (इन सब हेत्वाभासों के उपभेद तथा उदाहरण अब क्रमशः बतायेंगे)। असिद्ध हेत्वाभास के प्रकार
__असिद्ध हेत्वाभास के भेद इस प्रकार हैं-जो हेतु पक्ष में विद्यमान न हो वह स्वरूपासिद्ध होता है, जैसे-शब्द अनित्य है क्यों कि वह चाक्षुष है (चाक्षुष होना यह हेतु शब्द इस पक्ष में विद्यमान नही है अतः यह स्वरूपासिद्ध है)।
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