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अनैकान्तिक हेत्वाभास [३५. अनैकान्तिकभेदाः पक्षकदेशवर्तिनः]
पक्षत्रयैकदेशवृत्तिः यथा-अनित्या पृथिवी अस्मदादिबाह्येन्द्रियप्रत्यक्षत्वात् । पृथिव्यां पक्षरूपायाम् अस्मदादिप्रत्यक्षत्वमस्ति, तद्गतपरमाणुषु नास्ति । सपक्षरूपेऽनित्ये घटपटादौ अस्मदादिप्रत्यक्षत्वमस्ति न सुखादौ । नित्यरूपे विपक्षे प्रध्वंसाभावे अस्मदादिप्रत्यक्षत्वं विद्यते, कालात्माकाशादिषु नास्ति । पक्षसपक्षैकदेशवृत्तिः विपक्षव्यापको यथाद्रव्याणि दिक्कालमनांसि अमूर्तत्वात् । पक्षरूपे दिक्काले अमूर्तत्वमस्ति, मनसि नास्ति। सपक्षे आत्माकाशेषु विद्यते, द्रव्यरूपेषु घटादिषु अमूर्तत्व नास्ति । अद्रव्यरूपे प्रागभावप्रध्वंसाभावेतरेतराभावात्यन्ताभावे अभाव. चतुष्टये अमूर्तत्वं सर्वत्र व्याप्तम् । पक्षविपक्षैकदेशवृत्तिः सपक्षव्यापको यथा-न द्रव्याणि दिक्कालमनांसि अमूर्तत्वात्। पक्षरूपे दिक्काले
पक्ष के एक भाग में रहनेवाले अनैकान्तिक हेत्वाभास
तीनों पक्षों के (पक्ष सपक्ष तथा विपक्ष के) एक भाग में रहनेवाले अनैकान्तिक का उदाहरण-पृथ्वी अनित्य है क्यों कि वह हम जैसे लोगों के बाह्य इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष जानी जाती है। यहां पृथ्वी इस पक्ष में हम जैसे लोगों को प्रत्यक्ष ज्ञात होना यह हेतु है किन्तु इसी पक्ष में अन्तर्भूत पृथ्वी के परमाणुओं में यह हेतु नहीं है । सपक्ष में जो अनित्य घटपट आदि हैं उन में हमारे जैसे लोगों द्वारा प्रत्यक्ष ज्ञात होना यह हेतु है किन्तु सपक्ष के ही मुख आदि में यह हेतु नही है । विपक्ष में जो प्रध्वंसाभाव आदि नित्य हैं उन में यह हेतु अर्थात हम जैसे लोगों द्वारा प्रत्यक्ष ज्ञात होना विद्यमान है किन्तु काल, आत्मा, आकाश आदि नित्य पदार्थों में यह हेतु नही है । पक्ष
और सपक्ष के एकभाग में तथा विपक्ष में सर्वत्र रहनेवाले अनैकान्तिक का उदाहरण-दिशा, काल और मन द्रव्य हैं क्यों कि वे अमूर्त हैं। यहां पक्ष में शामिल दिशा और काल में अमूर्त होना यह हेतु है किन्तु मन में यह हेतु नही है । आत्मा, आकाश आदि सपक्ष में यह हेतु ( अमूर्त होना) है किन्तु घट आदि जो द्रव्य है ( अत एव सपक्ष हैं) उन में यह हेतु नही है। (विपक्ष में अर्थात ) जो द्रव्य नहीं हैं उन चार अभावों में - प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, इतरेतराभाव एवं अत्यन्ताभाव में - यह हेतु अर्थात अमुर्त होना सर्वत्र व्याप्त है । पक्ष और विपक्ष के एक भाग में तथा सपक्ष में सर्वत्र
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