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प्रकरणसम
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चारित्वाच्च । किं च, पक्षधर्मत्वं सपक्षे सत्वं विपक्षात् व्यावृत्तिः त्रैरूल्यम्। तत्र हेतोः विपक्षात् व्यावृत्तिः निश्चिता चे विपक्षे त्रैरूयाभावो निश्चित एव। तव्यावृत्तिनिश्चये स्वपक्षे त्रैरूल्याभावो निश्चितः स्मादेति न कस्यापि हेतोः उभयत्र त्रैरून्यं जावटीति । अथ पक्षलझयोरन्यतत्त्वादिति पक्षत्वादिति अस्य हेतोः उभयत्र त्रैरूयं जाघटीति इति चेन्न। तदसंभवात् । तथाहि । पक्षलपक्षयोरन्यतरत्वादिति पक्षपादिपभिप्राय: सपक्षत्वादिति वा । आये पक्षवादित्यस्य हेमोः साझे अलावात् सपने सत्त्वाभावेन त्रैरूप्याभावः। द्वितीये सपशवादित्यस्य हेतोः पझे अलचेन पक्षधर्मत्वाभावात् त्रैरूयाभावः। तथापि प्रोगां घुसपथ वृध निरूपणं प्रकरणसमस्य ॥
विपक्ष में भी विद्यमान होता है तथा ( सपक्ष और विपक्ष ) दोनों में अनियमित रूप से पाया जाता है ( - व्यभिचारी है )। पक्ष का धर्म होना, सपक्ष में होना तथा विपक्ष में न होना ये हेतु के तीन रूप ( आवश्यक गुण) हैं। यदि विपक्ष में हेतु नही है यह निश्चित हो तो उस हेतु के विपक्ष में ये तीन
रूप नही होंगे यह निश्चित है। तथा यदि विपक्ष में हेतु का अभाव नही है • (विपक्ष में भी हेतु पाया जाता है) यह निश्चित हो तो स्वपक्ष में इन तीन रूपों
का अभाव निश्चित होता है । अतः किसी भी हेतु के तीनों रूप (पक्ष और विपक्ष ) दोनों में घटित नहीं होते। उपर्युक्त उदाहरण में पक्ष ओर सपक्ष में
से एक होना इस हेतु का तात्पर्य पक्ष होना यह हो तो दोनों पक्षों में हेतु के · तीनों रूप संभव हैं यह कथन भी उचित नहीं क्यों कि यह असंभव है। - पक्ष और सपक्ष में से एक होना इस पक्ष का तात्पर्य पक्ष होना • यह होगा अथवा सपक्ष होना यह होगा । पहले पक्ष में • पक्ष होना यह हेतु सपक्ष में नही हो सकता अतः उस के तीन • रूपों में सपक्ष में होना इस एक रूप की कमी होगी। इसी प्रकार सपक्ष • होना यह हेतु मानें तो वह पक्ष में न होने से पक्षधर्म होना इस रूप का
अभाव होगा और इस प्रकार भी तीन रूप नहीं हो सकेंगे। (इस प्रकार प्रकरणसम का अनैकान्तिक से भिन्न अस्तित्व नहीं है ) तथापि श्रोताओं के : ज्ञान के लिए यहां प्रकरणसम हेत्वाभास का अलग से वर्णन किया है। .
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