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अनैकान्तिक हेत्वाभास
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पालकत्वं सर्वत्र व्याहमस्ति, पक्षरूपे नदीघोपजलधरनिनदादौ च अपदात्मकत्वं विद्यते ताव्वोपुटव्यापारजनिते शब्दे नास्ति । ननु पक्षैव देशवर्तिनां भागासिद्धत्वेन असिद्धभेदत्वात् तेषां किमर्थमन प्रयोग इति चेतु केषांचित् हेतृनामुभयदोषसद्द्भावप्रदर्शनार्थम् ॥ [ ३४. अनैकान्तिकभेदाः पक्षव्यापकाः ]
विपक्षेऽपि वृत्तिमान् हेतुरनैकान्तिकः । तद्भेदाः। पक्षत्रव्यापको यथा - अनित्यः शब्दः प्रमेयत्वात् । पक्षरूपे शब्दे सर्वत्र प्रमेयत्वमस्ति, सपक्षे घटपटादौ चास्ति, तथा नित्यरूपे विपक्षे आकाशादौ च प्रमेयत्वं सर्वत्र व्याप्तम् । पक्षव्यापकः सपक्षविपक्षैकदेशवृत्तिः यथा - नित्यः शब्दः अस्मदादिबाहेन्द्रियग्राह्यत्वात् । पक्षरूपे शब्दे अस्मदादिप्रत्यक्षत्वं सर्वत्र व्याप्तमस्ति, अनित्यरूपे सपक्षे घटपटादी अस्ति, अनित्यरूपे
होते हैं ) ( अतः यह विपक्षी पक्षैकदेशवृत्ति विरुद्ध हेत्वाभास है ) । यहां प्रश्न होता है कि जो हेतु पक्ष के एक भाग में ही होता है ( अन्य भागों में नही होता ) वह भागासिद्ध होता है, वह असिद्ध हेत्वाभास का प्रकार है, फिर यहां उस का प्रयोग क्यों किया है। उत्तर यह है कि कुछ हेतुओं में दोनों दोष ( असिद्ध होना और विरुद्ध होना ) होते हैं यह बतलाने के लिए (ऐसे उदाहरण दिये हैं ) ।
पक्ष में व्यापक अनैकान्तिक हेत्वाभास
जो हेतु विपक्ष में भी विद्यमान होता है उसे अनैकान्तिक हेत्वाभास
प्रमेय होना यह हेतु
कहते हैं । उस के प्रकारों के उदाहरण इस प्रकार हैं। सपक्ष तथा विपक्ष में) व्याप्त होनेवाले अनैकान्तिक का है क्योंकि वह प्रमेय है । यहां शब्द इस पक्ष में सर्वत्र विद्यमान है, घटपट इत्यादि सपक्ष में भी यह विद्यमान है तथा आकाश इत्यादि जो नित्य हैं उन विपक्ष के पदार्थों में भी प्रमेय होना सर्वत्र नात है । पक्ष में व्यापक तथा सपक्ष और विपक्ष के एक भाग में रहनेवाले अनैकान्तिक का उदाहरण - शब्द अनित्य है क्यों कि वह हम जैसे लोगों के बाह्य इन्द्रियों द्वारा ज्ञात होता है । यहां शब्द इस पक्ष में हम जैसे लोगों को प्रत्यक्ष ज्ञात
प्र.प्र. ३
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तीनों पक्षों में ( पक्ष, उदाहरण - शब्द अनित्य
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