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-१.२९]
[ २९. अनुमानभेदत्रयम् ]
तत् सर्वं त्रिविधं दृष्टानुमानं सामान्यतोदृष्टानुमानम् अदृष्टानुमानं चेति । अस्मदादिप्रत्यक्षगृहीतव्याप्तिकम् अस्मदादिप्रत्यक्षग्रहणयोग्याथनुमापकं दृष्टानुमानम | पर्वतोऽग्निमान् धूमवत्त्वात् महानसवत् इत्यादि । अस्मदादिप्रत्यक्षेण सामान्यतो गृहीतव्यात्तिकम् अतीन्द्रियार्थानुमापकं सामान्यतोदृष्टानुमानम। रूपादिपरिच्छित्तिः करणजन्या शियात्वात्, या या क्रिया सा सा करणजन्या यथा घटक्रिया, क्रिया चेयं रूपादिपरिच्छित्तिः, तस्मात् करणजन्या इत्यादि । आगमेनैव निश्चितव्याप्सिकम्
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अनुमान के तीन भेद
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युक्त होना तथा पक्ष का धर्म होना ये दोनों गुण हेतु में हैं यह मत स्थिर हुआ।
२५.
अनुमान के तीन भेद
सकता है अतः :
उपर्युक्त सभी अनुमानों के तीन प्रकार होते हैं- -दृष्ट अनुमान, सामान्यतोदृष्ट अनुमान तथा अदृष्ट अनुमान | जिस अनुमान की ( आधारभूत व्याप्ति का ज्ञान हम जैसे लोगों के प्रत्यक्ष ज्ञान द्वारा हुआ हो तथा हम जैसे लोगों के प्रत्यक्ष ज्ञान द्वारा जानने योग्य पदार्थ का ही जिस से बोध होता हो वह दृष्ट अनुमान कहलाता है जैसे- पर्वत अभियुक्त है क्योंकि यह ए से युक्त है जैसे रसोईघर ( धुंए से युक्त होता है तब अग्नि से युक्त होता ही है ) ( यहां धुंआ और अग्नि इन की व्याप्ति प्रत्यक्ष से जानी गई है तथा अनुमान से जाना गया पदार्थ अग्नि भी प्रत्यक्ष से जाना जा यह दृष्ट अनुमान है ) । जिस की व्याप्ति का सामान्य रूप से के प्रत्यक्ष द्वारा ज्ञान होता है किन्तु जिस से ज्ञात होनेवाला पदार्थ अतीन्द्रिय ( इन्द्रियप्रत्यक्ष से न जाना जाये) होता है उस अनुमान को सामान्यतोदृष्ट कहते हैं । जैसे-रूप आदि का ज्ञान साधनसे होता है क्यों कि वह क्रिया है,. जो जो क्रिया होती है वह वह साधन से निष्पन्न होती है जैसे घट की क्रिया यह रूप आदि का ज्ञान भी क्रिया है अतः यह भी साधन से निष्पन्न होती है (यहां क्रिया और साधन से निप्पन्न होना इन की व्याप्ति सामान्यतः हमारे प्रत्यक्ष से ज्ञात होती है किन्तु इस अनुमान से बोधित होनेवाला पदार्थ - रूप आदि का ज्ञान साधन से निष्पन्न होता है - इन्द्रियप्रत्यक्ष से नहीं
हम जैसे लोगों
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