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प्रमाप्रमेयम्
[१:३२[३२. सपक्षसद्भावे विरुद्धभेदाः] ___ साध्यविपरीते निश्चितव्याप्तिको हेतुः विरुद्धः। तद्भेदाः सति सपक्षे चत्वारो विरुद्धाः। पक्षविपक्षव्यापको यथा- नित्यः शब्दः कार्यत्वात् । पक्ष रूपे शब्दे कार्यत्वमस्ति, विपक्षरूपे अनित्ये घटपटादौ च सर्वत्रास्ति कार्यत्वम् । विपक्षकदेशवृत्तिः पक्षव्यापको यथा-नित्यः शब्दः सामान्यवनवे सति अस्मदादिबाह्येन्द्रियग्राह्यत्वात् । विपक्षरूपे घटादौ बाह्येन्द्रियग्राह्यत्वमस्ति, विपक्षरूपे सुखादौ तन्नास्त्येव, पक्षीकृतेषु शब्देषु सपक्ष के रहते हुए विरुद्ध हेत्वाभास के प्रकार
जिस की व्याप्ति साध्य के विरुद्ध पक्ष में निश्चित हो उस हेतु को विरुद्ध कहते हैं । सपक्ष के रहते हुए उस विरुद्ध हेत्वाभास के चार प्रकार होते हैं | पक्ष तथा विपक्ष में व्यापक विरुद्ध हेत्वाभास का उदाहरण- शब्द नित्य है क्यों कि वह कार्य है। यहां शब्द इस पक्ष में कार्य होना (यह हेतु) है, विपक्ष सर्थात घट पट इत्यादि अनित्य पदार्थों में भी सर्वत्र कार्य होना (यह हेतु) विद्यमान है ( अतः यह हेतु पक्षविपक्षव्याधी विरुव हेवाभास है) पक्ष में व्यापक तथा विपक्ष के एक भाग में रहनेवाले विरुद्ध हेत्वाभास का उदाहरण-शब्द नित्य है क्यों कि सामान्य से युक्त होते हुए वह हम जैसे लोगों को बाह्य इन्द्रियों से ज्ञात होता है। यहां घट इत्यादि विपक्ष में (अनित्य पदार्थों में ) बाह्य इन्द्रियों से ज्ञात होना ( यह हेतु ) है, सुख इत्यादि विपक्ष में (अनित्य पदार्थों में) वह नहीं है (वे बाह्य इन्द्रियों से ज्ञात नही होते ) तथा शब्द इस पक्ष में सर्वत्र बाह्य इन्द्रियों से ज्ञात होना (यह हेतु) विद्यमान है ( अतः यह विपक्षकदेशवृत्ति पक्षव्यापक विरुद्ध हेत्वाभास है)। पक्ष तथा विपक्ष दोनों के एक भाग में रहनेवाले विरुद्ध हेत्वाभास का उदाहरण - शब्द नित्य है क्यों कि वह प्रयत्न से उत्पन्न होता है । यहां पक्ष में जो शब्द तालू, होंठ आदि की हलचल से उत्पन्न होते हैं उन में तो प्रयत्नजनित होना यह हेतु है किन्तु नदी की आवाज, मेघगर्जना आदि शब्दों में वह हेतु नही है ( वे शब्द प्रयत्नजनित नही हैं ), घट इत्यादि विपक्ष में वह (प्रयत्नजनित होना) विद्यमान है किन्तु प्रागभाव जैसे विपक्ष में वह नहीं है (प्रागभाव प्रयत्नजनित नही होता, किसी वस्तु के उत्पन्न होने से पहले उस का जो
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