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प्रमाप्रमेयम्
[१.३०अतीन्द्रियार्थानुमापकम् अदृष्टानुमानम् । मुक्तात्मा सकलक्लेशरहितः सकलकर्मरहितत्वात् , यो यः सकलक्लेशरहितो न भवति स सर्वः सकलकर्मरहितो न भवति यथा संसारी, सकलकर्मरहितश्चायं मुक्तात्मा, तस्मात् सकलक्लेशरहितः इत्यादि ॥ [३०. अनुमानाभासः]
व्याहिपक्षधर्मतारहितहेतोः साध्यसाधनम् अनुमानाभासः। तत्र पक्षधर्मरहितो हेतुरसिद्धः। व्याप्तिरहिता हेतवः विरुद्धानकान्तिकानध्यवसितकालात्ययापदिष्टप्रकरणसमाः। सिद्धे प्रत्यक्षादिवाधिते च साध्ये प्रयुक्तो हेतुरकिंचित्करः। अकिंचित्करस्य व्याप्तिपक्षधर्मताराहि. mmmmmmmmmmmmmar जाना जा सकता अत: यह सामान्यतोदृष्ट अनुमान है)। जिस की व्याप्ति का निश्चय केवल आग: से ही होता हो तथा जिस से ज्ञात होनेवाला पदार्थ भी अतीन्द्रिय हो उस अनुमान को अदृष्ट कहते हैं। जैसे-मुक्त आत्मा सभी दुःखों से रहित होता है क्यों कि वह सभी कर्मों से रहित होता है, जो सभी कों से रहित नहीं होता वह सभी दुःखों से रहित नहीं होता जैसे संसारी जीव, मुक्त आत्मा सभी कर्मो से रहित होता है, अतः वह सभी दुःखों से रहित होता है ( यहां मुक आत्मा का सभी दुःखों से रहित होना यह विषय अतीन्द्रिय है तथा जो कर्मरहित होता है वह दुःखरहित होता है यह व्याप्ति भी प्रत्यक्ष से नही जानी जाती, इस का निश्चय केवल आगम से होता है अतः यह अदृष्ट अनुमान है)। अनुमान के आभास
जो व्याप्ति से रहित है तथा पक्ष का धर्म नही है ऐसे हे तु से सा व्य को सिद्ध करना यह अनुमान का आभास है । जो हेतु पक्ष का धर्म नही होता उसे असिद्ध कहते हैं। विरुद्ध, अनैकान्तिक, अनध्यवसित, कालात्ययापदिष्ट तथा प्रकरणसम ये हेतु व्याप्ति से रहित होते हैं । जो साध्य पहले ही सिद्ध हो उस के विषय में तथा जो प्रत्यक्ष आदि से बाधित हो उस के विषय में प्रयुक्त हेतु अकिंचित्कर कहलाता है । अकिंचित्कर हेतु व्याप्ति से रहित नही होता तथा पक्षधर्मत्वरहित भी नही होता फिर उसे (हेतु का) आभास कैसे कहा जाय ऐसा प्रश्न हो सकता है, उत्तर यह है कि उस का
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