________________
प्रमाप्रमेयम्
[१.२१
[२१. उपनयनिगमने]
पक्षधर्मत्वप्रदर्शनार्थ हेतोरुपस्कारः उपनयः। कृतकश्चायं शब्दः इति । उक्तोपसंहारार्थ प्रतिज्ञायाः पुनर्वचनं निगमनम्। तस्मादनित्यः .. इति ॥ । २२. हतोः पक्षधर्मत्वम् ]
ननु पक्षधर्मो हेतुरित्ययुक्तम् उदेष्यति शकटं कृत्तिकोदयात् इत्यादेः अपक्षधर्मस्यापि सम्यग्हेतुत्वात् इति चेत् न । अपक्षधर्मस्यासिद्धत्वात् । तथा हि, अनित्यः शब्दः चाक्षुषत्वात् इत्यविद्यमानसत्ताकस्य स्वयमेव निरूपणात् । वीता हेतवः असिद्धाः अपक्षधर्मत्वात् शब्दे चाक्षुषत्ववदिति प्रयोगाच्च। चाक्षुषत्वस्य अन्यत्र सत्त्वेऽपि पक्षे असत्वादेवासिद्धत्वम् mmmmmmmmmmmmmmmm. वह कृतक नही होता जैसे आकाश (यहां आकाश इस दृष्टान्त में अनित्यत्व यह साध्यधर्म तथा कृतकत्व यह साधनधर्म दोनों नही हैं)। उपनय और निगमन
हेतु पक्ष का धर्म है यह बतलाने के लिए हेतु को उपस्कृत करना यह उपनय है । जैसे ( उपर्युक्त अनुमान में )-और यह शब्द कृतक है (शब्द पक्ष है, उस में कृतकत्व हेतु का उपस्कार किया गया, यही उपनय है ) । कहे गये अनुमान के उपसंहार के लिए प्रतिज्ञा को पुनः कहना यह निगमन है। जैसे ( उपर्युक्त अनुमान में )-इस लिए शब्द अनित्य है । हेतु पक्ष का धर्म होता है
यहां प्रश्न होता है कि हेतु को पक्ष का धर्म कहना ठीक नहीं क्यों कि (कुछ समय बाद) रोहिणी नक्षत्र का उदय होगा क्यों कि (इस समय) कृत्तिका नक्षत्र का उदय हुआ है इत्यादि अनुमानों में जो हेतु पक्ष का धर्म नहीं है वह भी योग्य हेतु होता है (उपर्युक्त अनुमान में कृत्तिका का उदय यह हेतु रोहिणी इस पक्ष का गुण नहीं है फिर भी उस से रोहिणी के उदय का यथार्थ अनुमान होता है)। यह शंका ठीक नही क्यों कि जो हेतु पक्ष का धर्म नही होता वह असिद्ध होता है । जैसे -शब्द अनित्य है क्यों कि वह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org