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२२ प्रमाप्रमेयम्
[१.२७सपक्षविपक्षसहितः अन्वयव्यतिरेकी। पर्वतोऽग्निमान् धूमवत्वात् , यो यो धूमवान् स सर्वोऽप्यग्निमान् यथा महानसः, यो योऽग्निमान् न भवति स सर्वोऽपि धूमवान् न भवति यथा हृदः, धूमवांश्चायं पर्वतः तस्मात् अग्निमान् भवति इत्यादि । [२७. केवलान्वयि अनुमानम् ]
विपक्षरहितः सपक्षरहितः केवलान्वयी। वीतः सदसद्वर्गः कस्यचिदेकज्ञानालम्बनमनेकत्वात् , यद् यदनेकं तत् कस्यचिदेकज्ञानालम्बनं, यथा पञ्चाङ्गुलम् , अनेकश्चायं सदसद्वर्गः तस्मात् कस्यचिदेकज्ञाना. लम्बनमित्यादि । ननु केवलान्वयि न प्रमाणं विपक्षाद् व्यावृत्तिरहितत्वात् अनैकान्तिकवत् इति मीमांसकः प्रायोक्षीत्। तत्र विपक्षग्रहणव्यावृत्तिस्मरणयोरभावे विपक्षाद् व्यावृत्तिरहितत्वस्य ज्ञातुमशक्तेः अज्ञातासिद्धो व्यतिरेकी । सपक्ष और विपक्ष दोनों से सहित हेतु अन्वयव्यतिरेकी होता है। जैसे - यह पर्वत अग्नियुक्त है क्यों कि यह धुंए से युक्त है, जो धुंए से युक्त होता है वह सब अग्नि से युक्त होता है, जैसे रसोईघर, जो अग्नि से युक्त नही होता वह धुंए से युक्त भी नही होता, जैसे सरोवर, और यह पर्वत धुंए से युक्त है, अतः यह अग्नि से युक्त है । (यहां धुंए से युक्त होना यह हेतु अन्वयव्यतिरेकी है क्यों कि इस में रसोईघर आदि सपक्ष हैं और सरोवर आदि विपक्ष है)। केवलान्वयी अनुमान
___ जो हेतु सपक्ष से सहित किन्तु विपक्ष से रहित होता है उसे केवलान्वयी कहते हैं। उदा.- विचार का विषय सत् तथा असत् (भावरूप तथा अभावरूप ) पदार्थों का समूह किसी एक के ज्ञान का विषय होता है क्यों कि वह अनेक है, जो अनेक होता है वह किसी एक के ज्ञान का विषय होता है, जैसे पांच अंगुलियां, ये सत् तथा असत् पदार्थ भी अनेक हैं, इसलिए वे किसी एक के ज्ञान के विषय होते हैं । ( यहां अनेक होना यह हेतु सदसद्वर्ग इस पक्ष में है, पंचांगुल इस सपक्ष में है, किन्तु इस का कोई विपक्ष नही है क्यों कि संसार के जितने भी पदार्थ हैं उन सबका सदसद्वर्ग इस पक्ष में अन्तर्भाव हो जाता है, अतः यह हेतु केवलान्वयी है)। यहां
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