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तर्क
-१.१५] इच्छाप्रतिपालनेन सर्वेषां प्रीतिः इच्छाविघातेन सर्वेषां द्वेषः इत्यादि । तद्विपरीतः तदाभासः॥ [ १५. तर्कः]
साध्यसाधनयोः व्याप्तिज्ञानं तर्कः। साधनसामान्यस्य साध्यसामान्येन अव्यभिचारः संबन्धो व्याप्तिः। सा चान्वयव्यतिरेकभेदात् द्वेधा । सपक्षे भूयः साधनसद्भावदर्शने साध्यसद्भावदर्शनेन निश्चिता अन्वयव्याप्तिः। यो यो धूमवान् स सर्वोऽप्यग्निमान् यथा महानसादिरिति। विपक्षे भूयः साध्याभावदर्शने साधनाभावदर्शनेन निश्चिता व्यतिरेक व्याप्तिः। यो योऽग्निमान् न भवति स सर्वोऽपि धूमवान् न भवति यथा हृदादिरिति । अव्याप्तौ व्याप्तिज्ञानं तर्काभासः यद् यत् प्रमेयं तत् तन्नित्यमित्यादि। होता है, इच्छा में रुकावट आने से सब नाराज होते हैं इत्यादि । इस के विपरीत (अवास्ताविक ) ज्ञान को इस का आभास समझना चाहिए। तर्क
साध्य और साधन की व्याप्ति के ज्ञान को तर्क कहते हैं। साधन के सामान्य स्वरूप का साध्य के सामान्य स्वरूप से कभी न बदलने वाला जो संबंध होता है उसे व्याप्ति कहते हैं । उस के दो प्रकार हैं - अन्वय तथा व्यतिरेक । समान पक्ष में बारबार साधन का अस्तित्व देखने के समय साध्य का भी अस्तित्व देखने से जिस का निश्चय हुआ हो वह अन्वयव्याति होती है । जैसे - जो जो धुंए से युक्त होता है वह सब अग्नि युक्त होता है जैसे - रसोईघर ( यहां रसोईघर आदि समानपक्षों में धुंआ इस साधन के होनेपर अग्नि इस साध्य का भी अस्तित्व बारबार देखा गया है अतः जहां धुंआ होता है वहां अग्निभी होता है यह अन्वयव्याप्ति निश्चित हुई )। विरुद्ध पक्ष में बारबार साध्य का अभाव देखने पर साधन का भी अभाव देखने से जिस का निश्चय हो वह व्यतिरेकव्याप्ति होती है । जैसे -जो जो अग्नि से युक्त नही होता वह सब धुंए से युक्त भी नही होता जैसे सरोबर आदि । जहां व्याप्ति न हो वहां व्याप्ति समझना तर्क का आभास है, जैसे - जो जो प्रमेय है वह वह नित्य होता है ( यहां जो प्रमेय होता है वह नित्य होता है यह
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