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प्रमाप्रमेयम्
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[१६. अनुमानम् ] ___ सम्यक्साधनात् साध्यविज्ञानम् अनुमानम्। स्वार्थपरार्थभेदात् द्विविधम् । परोपदेशमन्तरेण साधनदर्शनात् साध्यविज्ञानं स्वार्थानुमानम् । स्वार्थानुमानपरामर्शिपुरुषवचनात् ज्ञातं परार्थानुमानम्। तद्वचनमपि तद्हेतुत्वात् परार्थानुमानमेव । तच्च अनित्यः शब्दः कृतकत्वात् , यो यः कृतकः स सर्वोऽप्यनित्यः यथा घटः, यद्यदनित्यं न भवति तत् तत् कृतकं न भवति यथा व्योम, कृतकश्चायं शब्दः, तस्मादनित्यः इति । पक्षसाध्यहेतुदृष्टान्तोपनयनिगमनान्यवयवाः षट् प्रसिद्धाः॥ [१७. पक्षः )
सिषाधयिषितधर्माधारो धर्मी पक्षः। शब्दः इति । पक्षस्य प्रसिद्धत्वं
· व्याप्ति नही हो सकती क्यों कि बहुतसे प्रमेय अनित्य भी होते हैं, अतः इसे यदि व्याप्ति माना जाता है तो उस ज्ञान को तर्कामास कहा जायेगा)। अनुमान
योग्य साधन से साध्य का ज्ञान होना यह अनुमान प्रमाण है। इस के दो प्रकार हैं - स्वार्थानुमान तथा परार्थानुमान । दूसरे के उपदेश के बिना साधन को देखने से जो साध्य का ज्ञान होता है वह स्वार्थानुमान है। स्वार्थानुपान के जाननेवाले पुरुष के कहने से जो ज्ञान होता है वह परार्थानुमान है । उस का कारण होने से ऐसे अनुमान के कथन को भी परार्थानुमानही कहते हैं ( वाक्य शब्दों से बना होता है अतः वह जड होता है इस लिए प्रमाण नही हो सकता किन्तु यहां का वाक्य परार्थानुमान का ज्ञान कराने का कारण है अतः उसे व्यवहार से अनुमानप्रमाण कहते हैं )। उस का उदाहरण- शब्द अनित्य है क्यों कि वह कृतक है, जो जो कृतक होता है वह सभी अनित्य होता है जैसे घट, जो जो अनित्य नही होता वह कृतक नही होता जैसे आकाश, और यह शब्द कृतक है इस लिए यह अनित्य है । अनुमान के छह अवयव प्रसिद्ध हैं - पक्ष, साध्य, हेतु, दृष्टान्त, उपनय तथा निगमन । पक्ष
जिसे सिद्ध करने की इच्छा है उस धर्म (गुण) के आधार धर्मी (धर्म
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