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का सम्मिलन और अतिक्रमण होता है। क्योंकि वहां सूर्य और चंद्रमा मिलते हैं और अतिक्रमण हो जाता है।
योग के लिए .हठ पुराना शब्द है। हठ' शब्द अत्यधिक महत्वपूर्ण है।'ह' का अर्थ है सूर्य।'ठ' का अर्थ है : चंद्रमा। और 'हठ' का अर्थ है. सूर्य और चंद्रमा का मिलन। सूर्य और चंद्र का मिलन योग है, यूनियो मिस्टिका है।
हठ योगियों के अनुसार मनुष्य के शरीर में ऊर्जा की तीन धाराएं होती हैं। एक को 'पिंगला' कहते हैं, यह दाईं धारा है, मस्तिष्क के बाएं हिस्से से जुड़ी है-सूर्य-नाड़ी। फिर दूसरी धारा है 'इड़ा', बाईं धारा, दाएं मस्तिष्क से जुड़ी है-चंद्र-नाड़ी। और तब एक तीसरी धारा है, मध्यधारा, सुषुम्ना, केंद्रीय, संतुलित, यह सूर्य और चंद्रमा दोनों से एक साथ मिल कर बनी है।
सामान्यत: तुम्हारी ऊर्जा या तो 'पिंगला' द्वारा गतिमान होती है या 'इडा' द्वारा। योगी की ऊर्जा सुषुम्ना द्वारा प्रवाहित होने लगती है। यह कुंडलिनी कहलाती है। तब ऊर्जा इन दोनों दाएं और बाएं के ठीक मध्य से प्रवाहित होती है। तुम्हारे मेरुदंड के साथ ही इन धाराओं का अस्तित्व है। एक बार उर्जा मध्यधारा से प्रवाहित होने लगे, तुम संतुलित हो जाते हो। तब व्यक्ति न स्त्री होता है न पुरुष, न कोमल न कठोर, या दोनों पुरुष-स्त्री, कोमल और कठोर। सुषुम्ना में सारी ध्रुवीयताएं विलीन हो जाती हैं और सहस्रार सषम्ना का शिखर है।
अगर तुम अपने अस्तित्व के निम्नतम बिंदु मूलाधार, काम-केंद्र पर रहते हो, तो तुम्हारी गति या तो 'इड़ा' से होगी या 'पिंगला' से होगी, सूर्य-नाड़ी या चंद्र-नाड़ी, और तुम विभाजित रहोगे। और तुम दूसरे की खोज करते रहोगे, तुम दूसरे की कामना करते रहोगे, तुम स्वयं में अधूरापन अनुभव करोगे, तुम्हें दूसरे पर आश्रित रहना पड़ेगा।
जब तुम्हारी अपनी ऊर्जाएं अंदर मिल जाती हैं तो काम-ऊर्जा का विस्फोट, ब्रह्मांडीय चरम ऊर्जा का विस्फोट, घटता है, जब इड़ा और पिंगला मिल कर सुषुम्ना में समा जाती हैं, तब व्यक्ति पुलक से, पलक के सातत्य से भर उठता है। तब व्यक्ति आनंदित, निरंतर आनंदमग्न रहता है। तब इस आनंद का कोई अंत नहीं है। फिर वह व्यक्ति कभी नीचे नहीं आता, तब वह कभी भी अधोगामी नहीं होता। व्यक्ति शिखर पर ही रहता है। ऊंचाई का यह बिंद् व्यक्ति का अंतर्तम केंद्र, उसका समग्र अस्तित्व
है। इसे फिर से खयाल में ले लो, मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि यह एक मानचित्र है। हम किन्हीं वास्तविक चीजों की बात नहीं कर रहे हैं। ऐसे भी मूढ़ लोग हो गए हैं, जिन्होंने मानव शरीर का विच्छेदन करके यह देखने की कोशिश भी की कि इड़ा और पिंगला और सुषुम्ना कहां हैं और वे उन्हें कहीं नहीं मिलीं। ये सिर्फ संकेत हैं, प्रतीक हैं। ऐसे भी मूढ़ हुए हैं जिन्होंने चक्रों की खोज में कि वे कहां हैं, मानव- शरीर का विच्छेदन किया है। एक चिकित्सक ने भी यह सिदध करने के लिए कि