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पंचलिंगीप्रकरणम्
आशीर्वचन
खरतरगच्छ के आद्याचार्य श्री मज्जिनेश्वरसूरि द्वारा प्राकृत भाषा में विरचित सम्यक्त्व के पाँच लिंगों की व्याख्या करने वाले महत्वपूर्ण ग्रंथ 'पंचलिंगीप्रकरणम्' का आधुनिक भारतीय व पाश्चात्य भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध नहीं होने से जिज्ञासु पाठक भी इन ग्रंथों का लाभ नहीं उठा पा रहे थे। यह ग्रंथ मोक्षमार्ग के प्रस्थानबिंदु सम्यक्त्व की प्राप्ति में प्रकाशस्तंभ की भांति है। यह प्रसन्नता का विषय है कि इस प्राचीन ग्रंथ के हिन्दी व आंग्ल भाषानुवाद डॉ. हेमलताजी बोलिया तथा डॉ. कर्नल दलपतसिंहजी बया 'श्रेयस' ने अत्यंत प्रयासपूर्वक किया है । अर्थ सहयोग श्री गुजराती जैन श्वेताम्बर तपागच्छ संघ, कोलकाता ने किया है। एतदर्थ उन्हें धर्मलाभ के साथ ही
शुभकामना व आशीर्वाद है कि वे भविष्य में भी ऐसे अप्रकाशित ग्रंथों के प्रकाशन में अपने तन, मन, धन, व श्रम का सदुपयोग करते रहें ।
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प. पू. गुरुणीवर्या श्री सुदर्शनाश्रीजी म.सा. की शिष्या साध्वी चन्द्रकलाश्री