________________
नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 21 पुनर्जन्म के सिद्धांत में आस्था रखने वाले नैतिक एवं धार्मिक लक्ष्यों से युक्त एक धर्म संघ के संस्थापक के रूप में ही प्रस्तुत करते हैं। पाइथागोरस में मिताचार (संयम), धैर्य, मैत्री सम्बंध में विश्वसनीयता, शासन की आज्ञाओं एवं विधानों का पालन, मृत-मांस का त्याग, प्रतिदिन आत्मालोचन तथा धर्मानुष्ठान की क्रियाओं को करने की शिक्षाएं दी थीं। उनके इन उपदेशों में हम एक ऐसा प्रयास देखते हैं, जो मनुष्य के जीवन को यथासम्भव ईश्वर के अनुरूप ढालना चाहता है और जो अपनी मौलिकता एवं गम्भीरता के लिए आश्चर्यजनक है, किंतु ये उपदेश या शिक्षाएं भी दार्शनिक पद्धति की अपेक्षा ईश-दूत संवाद की परम्परागत शैली में दी गई हैं तथा उनके शिष्यों के द्वारा अपने गुरु की बात का पूर्ण अविवेकपूर्ण श्रद्धा (अंध श्रद्धा) के साथ बिना उस बात की विवेचना किए ही वैसी की वैसी स्वीकार कर ली गई है कि वे किसी ठोस बौद्धिक आधार पर स्थित हैं या केवल काल्पनिक हैं।', तथापि पाइथागोरस की शिक्षाओं के इन बिखरे हुए विचारों में, जो कि हम तक पहुंच पाएं हैं, एक वास्तविक दार्शनिक तत्त्व को खोजा जा सकता है। यद्यपि पाइथागोरस की यह मान्यता कि 'न्याय का सार वर्ग अंक है' प्रथमतः हमें डरावनी लगती है, तथापि यह पाइथागोरस के दर्शन के प्रमुख लक्षण गणितीय दृष्टिकोण को आचरण के क्षेत्र तक व्यापक बनाने के एक गम्भीर प्रयास की सूचक है। निःसंदेह वर्ग संख्या के प्रत्यय का प्रयोग त्याग की मात्रा के अनुरूप प्रतिफल के वास्तविक अनुपात को सूचित करने के लिए हुआ है, जो कि प्रतिवादात्मक न्याय (बदले के सिद्धांत) का सारभूत तत्त्व माना जाता है। पाइथागोरस के प्रमुख कथन हैं- सद्गुण और स्वास्थ्य में सामंजस्य है, मित्रता एक सुसंगत समानता है। उसने एकता, मर्यादा, सरलता आदि गुणों को शुभ में और इनके विरोधी गुणों को अशुभ में वर्गीकृत किया है।
उसकी उपर्युक्त धारणा में हम प्लेटो के उस दृष्टिकोण का बीज पाते हैं, जिसके अनुसार मानवीय आचरण में बाह्य जगत् में तथा कलाकृतियों में शुभत्व उनके अच्छे परिणामों के मात्रात्मक सम्बंधों पर निर्भर रखता है, यह समानुपात अति या कमी के दोष से सर्वथा रहित है। हेराक्लाइट्स (530 ई.पू. से 470 ई.पू.)
यदि पाइथागोरस आंशिक रूप में प्लेटोवाद की किन्ही धारणाओं के पूर्व प्रस्तोता हैं, तो हेराक्लाइट्स को स्टोइकवाद का पूर्व प्रवक्ता कहा जा