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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 20
अध्याय 2
ग्रीक और ग्रीक - रोमन नीतिशास्त्र
यूरोपीयन सभ्यता के अन्य तथ्यों के समान ही ग्रीक नैतिक चिंतन का तथा उसी से विकसित यूरोपीय नैतिक चिंतन का प्रारम्भ भी आकस्मिक एवं अनपेक्षित नहीं है। ईसा पूर्व सातवीं एवं छठवीं शताब्दी के ग्रीक सूक्तिकाव्य ग्रीक साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग है। उनमें ग्रीक ऋषियों के आचरण सम्बंधी बिखरे हुए विचारकण एवं सहज-प्रसूत उद्गार सर्वत्र उदीयमान नैतिक चिंतन को अभिव्यक्त करते हैं। ग्रीक सभ्यता के विकास में उनके कथनों के महत्व का मूल्यांकन उन्हें छठवीं शताब्दी के सप्त ऋषि कहकर किया गया है। प्लेटो और अरस्तू ने इन कवियों एवं ऋषियों की नैतिक परिभाषाओं एवं सूक्तियों को उद्धृत कर नैतिक चिंतन पर इनके प्रभाव को पूर्णतया स्पष्ट कर दिया है, किंतु उनके नैतिक चिंतन को अभी इन उद्गारों से नैतिक दर्शन के निर्माण तक का एक लम्बा मार्ग तय करना था। यद्यपि ग्रीस के प्रथम भौतिकवादी दार्शनिक थेल्स (640-560 ई.पू.) इन सप्त ऋषियों में से हैं, फिर भी उनकी व्यावहारिक बुद्धि में दार्शनिक कल्याण मानने का कोई आधार नहीं दिखाई देता है। साधारणतया थेत्स्र से सुकरात के युग तक ग्रीक दर्शन की रुचि का सामान्य केंद्रबिंदु नैतिक समस्याएं न होकर भौतिक एवं तात्त्विक समस्याएं ही रही हैं। सुकरात के पूर्ववर्ती मौलिक चिंतकों में यदि हम सोफिस्ट विचारकों को छोड़ दें, तो केवल तीन विचारक शेष रहते हैं, जिनकी नैतिक शिक्षाएं हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं। ये तीन विचारक पाहथागोरस, हेराक्लाइट्स और डेमोक्रिटस हैं। यह दृष्टव्य है कि इनमें से प्रत्येक विचारक सुकरात के बाद की तीन प्रमुख विचारधाराओं में से किसी एक के महत्वपूर्ण तथ्यों की रोचक ढंग से पूर्व - अवधारणा प्रस्तुत करता है। पाइथागोरस (580-500 ई.पू.)
यदि हम उन दंतकथाओं के गहन आवरण में से, जिन्होंने उनकी ऐतिहासिक परम्परा को ढंक लिया है, किसी निश्चितता के साथ उनकी रचनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत कर सकें, तो सम्भवतया उन सप्त मनीषियों में प्रथम पाइथागोरस हमारे लिए सबसे अधिक रुचिकर सिद्ध होंगे। पाइथागोरस के सम्बंध में उपलब्ध विश्वसनीय प्रमाण उन्हें नैतिक दर्शन के प्रवर्त्तक की अपेक्षा आत्मा के