________________
६०
नियुक्तिपंचक हमने नियुक्ति के कम में नहीं जोड़ा है, जैसे—दनि ८२/३ (निभा ३१६९), १०४/५ (निभा ३१९२) ।
यद्यमि गाथा-संख्या का निर्धारण पाठ-संपादन से भी जटिल कार्य है किन्तु हमने कुछ बिंदुओं के आधार पर गाथाओं के पौधिर्य एवं उनके प्रक्षेत्र के बारे में विमर्श प्रस्तुत किया है। भविष्य में इस दिशा में चिंतन की दिशाएं खुली है, इस संदर्भ में और भी चिंतन किया जा सकता है। नियुक्ति में निक्षेप-पद्धति
निक्षेप व्याख्यान-अर्थ-निर्धारण की एक विशिष्ट पद्धति रही है। न्यास और स्थापन. इसके पर्यायवाची शब्द हैं। निक्षेप शब्द का निरुक्त करते हुए जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण करते हैं कि शब्द में नियत एवं निश्चित अर्थ का न्यास करना निक्षेप है। जीतकल्यभाग्य के अनुसार जिस वचन-पद्धति में अधिक क्षेप/विकल्प हों, वह निक्षेप है।' अनुयोगदारचूर्णि में अर्थ की भिन्नता के विज्ञान को निक्षेप कहा है। धवलाकार के अनुसार संशय, विपर्यय एवं अनध्यवसाय में स्थित वस्तु को उनसे हटाकर निश्चय में स्थापित करना निक्षेप है। आचार्य तुलसी.ने शब्दों में विशेषण के द्वारः प्रतिनियत अर्थ का प्रतिपादन करने की शक्ति निहित करने को निक्षेप कहा है।
भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में निक्षेप जैन आचार्यों की मलिक देन है। पांडित्य प्रदर्शित करने का यह महत्त्वपूर्ण उपक्रम रहा है। इस पद्धति से गुरु अपने शिक्षण को अधिक समृद्ध बनाता है। वह शब्दों का अर्थों में तथा अर्थो का शब्दों में न्यास करता है अत: किसी भी वाक्य या शब्द का अर्थ करते समय वक्ता का अभिप्राय क्या है तथा कौन-सा अर्थ किस परिस्थिति में संगत है, यह निश्चय करने में निक्षेप की उपयोगिता है। निक्षेप के बिना व्यवहार की सम्यग् योजना नहीं हो सकती क्योंकि प्रत्येक वस्तु अनंत पर्यायात्मक है। उन अनंत पर्यायों को जानने के लिए शब्द बहुत सीमित हैं। एक शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है अत: पाठक या श्रोता विवक्षित अर्थ को पकड़ नहीं पाता। अनिर्णय की इस स्थिति का निराकरण निक्षेप-पद्धति के द्वारा किया जा सकता है।
निक्षेपों के माध्यम से यह ज्ञान किया जा सकता है कि अमुक-अमुक शब्द उस समय किन-किन अर्थों में प्रयुक्त होता था। जैसे समाधि शब्द का अर्थ आज चित्तसमधि या प्रसन्नता के लिए किया जाता है लेकिन सूत्रकृतांग निर्युक्त में किए गए निक्षेपों के माध्यम से विविध संदर्भो में समाधि के विभिन्न अर्थों को समझा जा सकता है। जैसें मनोहर शब्द आदि पांच विषयों की प्राप्ति होने पर जो इंद्रियों की तुष्टि होती, उसे समाधि कहा जाता था। परस्पर अविरुद्ध दो या अधिक द्रव्यों के सन्मिश्रण से जो रत की पुष्टि होती. उसे भी समधि कह जाता था। जिस द्रव्य के खाने या पीने से शक्ति या सुख प्राप्त होता,उसे समाधि प्राब्द से अभिहित किया जाता था। तराजू के ऊपर जिस वस्तु को चढ़ाने से दोनों पलड़े समान हों, उसे भी समाधि की संज्ञा दी जाती थी। जिस क्षेत्र अथवा काल में रहने से चित्त को शांति मिलती, उसे समाधि कहा जाता तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप में स्थिति को भी समाधि कहा जाता था। १ विभा ९१२।
निश्चये क्षिपतीति निक्षेपः। २ जीतभा ८०९: त्रिव पेरणे तु भणितो अतिउक्लेको त निक्लेवो। ५. जैनसिद्धान्तदीपिका १०/४:शब्देष विशेषण३ अनुवाचू निक्खेव अत्यभेदन्यास।
बलेन प्रतिनियतार्थप्रतिपयनशक्तेनिक्षेपण ४. धग्ला: सशविपर्यये अनध्यवसाये या स्थितस्तेभ्योऽपसार्य निक्षेपः।