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नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण लगता है। कथा से संबंधित इन गाथाओं को नही रखने से विषय-वस्तु की दृष्टि से कोई अंतर नहीं आता। चूर्णि में भी ये ग्यारं निर्दिष्ट एवं व्याख्यात नहीं हैं।
आचारांगनियुक्ति गा २७९ , बाद में किसी आचार्य या लिपिकार द्वारा प्रसंगवश जोड़ ई गयी प्रतीत होती है। चालू प्रसंग में मोक्ष का वर्णन है अतः बंध का स्वरूप प्रकट करने वाली यह था स्मृति के लिए आदर्शों में लिखी गयी होगी, जो कालान्तर में हस्त-ग़दर्शो में मूल के साथ जुड़ गयी। इस मया को नियुक्ति के कमांक में न जोड़ने पर भी चालू विषय- पस्तु में कोई व्यवधान नहीं आता। इस गया क. पूर्ति और ही दोनों पक्षण रामों में पाया नहीं है। ३१८-२० तक की तीन गाथाएं भी भाषा-शैली की दृष्टि से भिन्न प्रतीत होती है अत: बाद में प्रक्षिप्त होनी चाहिए।
इसी प्रकार सूत्रकृतांगनियुक्ति गा. १५२ को यपि हगने नियुक्ति-गाथा के कगांफ में जोड़ा है लेकिन ये बाद में प्रक्षिप्त प्रतीत होते हैं क्योंकि टीक में यह मूल कमांक में न होकर टिपा में दी गई है। इसके अतिरिक्त यह गा. १४९७ की संवादी है अतः पुन रक्त सी प्रतीत होती है।
२४. सूत्रकृतौगनियुक्ति में ११-१३ ये तीन गाथाएं प्रकाशित चूर्णि में उद्धृत गाथा के रूप में हैं लेकिन ये निमुक्त्तिगाथाएं होती चाहिए क्योंकि दसवीं गायः दो उत्तरार्ध में 'ओहेण नामतो पुण भवति एक्कारसक्करणा' का उल्लेख है अतः ग्यारह करणे के नामोल्नेल वली ये तीनों गाथाएं नियुक्ति की होनी चाहिए। दूसरा विकल्प यह भी संभव है के करण के प्रसंग में उत्तरध्ययननियुक्ति में ये गाथाएं आ चुकी हैं अतः पुनरुक्ति भय से इन गाधाओं को सूत्रकृतांगनियुक्ति में सम्मिलित न किया हो।
२५. प्रकाशित चूणि में कहीं-कहीं गाथा की व्याख्या एवं गाथा-संख्या मिलती है पर गाथा नहीं मिलती। संपादक मुनि पुण्यविजयजी ने गाथा न होने पर भी व्याख्या के आधार पर गाथा-संख्या का कमांक लगा दिया है। टीका और आदर्श में गाथा न मिलने के कारण ऐसे संबभर्मों में हमने गाथा का कमांक नहीं लगाया है, देखें सूनि गा. २२ का टिप्पण।।
२६. सूनि गा. १६३-६५ तक की तीन गाधाएं भी बहुत संभव है कि बाद में जोड़ी गयी हों क्योंकि भूल कथ्य गा. १६२ में आ गया है। लेकिन टीकाकार ने इन गाथाओं के लिए नियुक्तिऋदर्शयितुमाह का उल्लेख किया है। इस उल्लेख से स्पष्ट है कि उनके समय तक ये गाधार नियुक्ति-गाथा के रूप में प्रसिद्धि पा चुकी थी। वर्तमान में ये नियुक्ति का अंग बन गयी हैं अतः हमने इनको नियुक्ति-गाथा के क्रम में जोड़ दिया है।
२७. दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति के पज्जोसवणाकप्प की नियुक्ति का पूरा प्रकरण निशीथभाष्य में भी मिलता है। निशीथभाष्य में कहीं-कहीं बीच में अतिरिक्त गाथाएं भी हैं। दनि मा. ८८ का संकेत दूर्ण में न होने पर भी व्याख्या उपलब्ध है। हस्तप्रतियों में भी यह गाथा नहीं है परन्तु भाष-शैली एवं विषय-वस्तु से संबद्ध होने के कारण निशीथभाष्य (३१३५ ) में प्राप्त इस गाथा को हमने नियुक्त के कमांक में जोड़ा है। संभव है लिपिकारों द्वारा मूल प्रति में किसी कारणवश इसका संकेत छूट गया हो ।
कुछ अतिरिक्त गाथाएं,जो हमें बालू कग में विषय-वस्तु के प्रतिकूल या व्याख्यापरक लगी, उनको
१. मुनि पुष्यविजय की संपादित चूर्णि में २० का क्रमांक है।