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नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण नियुक्तिकार कथा का संकेत मात्र करते हैं। जैसे—दशनि १६३/१ गाथा में उल्लिखित कथा को १६४ वी गाथा से भी समझा जा सकता है। चूर्णि में भी १६३/१ गाथा का संकेल नहीं है अत: हमने इसे नियुक्ति-गाथा के कम में नहीं जोड़ा है। अनेक स्थलों पर पुनकित के आधार पर भी गाथा का निर्धारण किया गया है।
___गा. ४१६/9 में प्रतिपादित विषय की एनरक्ति अगली गाथाओं में हुई है। दोनों चूर्णियों में भी इस गाथा का संकेत नहीं है अत: हमने इसे नियुक्ति-गाथा के कम में नहीं रखा।
१४. दशवकालिक की प्रथम चूलिका की चूर्णि में दो गाधाएं (३३७,३३८) मिलती हैं किन्तु टीका में उसके स्थान पर एक ही गाथा मिलती है। व्यास्था की दृष्टि से टीकाकार ने चर्णि में आई म.थाओं की ही व्याख्या की है अत: हमने चूर्णि के आधार पर टीका बाली गाथा को पादटिप्पण, में देकर उसे नियुक्ति क्रम में संलग्न नहीं किया है।
१५. उत्तराध्ययननियुक्ति में कथाओं के विस्तार वाली गाथाओं का प्राय: चूर्णि में संकेत नहीं है। अधिक संभव लगता है कि वे गाथाएं कथा को स्पष्ट करने के लिए बाद में जोड़ी गयी हों। लेकिन हमने कथानक की सुरक्षा एवं ऐतिहासिक दृष्टि से उन गाथाओं को नियुक्त्ति-गाधा के क्रम में जोड़ा है, जैसेउनि ३५६-६६ ।
इसी प्रकार आषाढभूति की कथा (उनि १२४-४१) में १८ गाथ्यएं स्पष्टतया बाद में जोडी गयी प्रतीत होती है क्योंकि २२ परीषहों की प्राय: कथाएं १ या २ गाथाओं में निर्दिष्ट हैं। ये गाथाएं भाषा-शैली एवं छंद की दृष्टि से भी अतिरिक्त प्रतीत होती हैं। लेकिन हमने इनको नियुक्ति-गाथा के क्रमांक में जोड़ा है।
१६. कुछ गाथाएं प्रकाशित टीका में निगा के क्रम में होने के बावजूद स्पष्ट रूप से प्रक्षिप्त लगती हैं। जैसे पांचालराज नग्गति इंद्रकेतु को देखकर प्रतिबुद्ध हुए लेकिन उनके बारे में चन्द्रमा की हानि-वृद्धि तथा महानदी की पूर्णता और रिक्तता का उदाहरण बताने वाली गाथा टीका में मिलती है। संभव है कि अनित्यता को दर्शाने वाली यह गाथा बाद में जोड़ी गयी हो.देखें उनि २६२/१। उसी प्रकार उनि गा. ४७८/१.२ ये दोनों गाथाएं भी आवश्यकनियुक्ति या उत्तराध्ययन सूत्र से लिपिकारों या अन्य आचार्यो द्वारा बाद में जोड़ी गयी हैं।
१७.कहीं-कहीं संग्रह गाथाओं को भी नियुक्तिकार ने अपने ग्रंथ का अंग बना लिया है। भगवती एवं पण्णवणा आदि ग्रंथों की कुछ संग्रहणी गाथाओं का नियुक्तियों में समावेश है। उन गाथाओं को हमने नियुक्ति-गाथा के क्रम में संलग्न किया है, जैसे—उनि गा. ४१९-२१।।
१८. कहीं-कहीं प्रसंगवश अतिरिक्त गाथाएं भी नियुक्ति का अंग बन गयी हैं। जैसे—अचेल परीषह के अंतर्गत आर्यरक्षित की कथा में उनि गा. ९५. ९६ अप्रासंगिक या बाद में प्रक्षिप्त सी लगती हैं। चूर्णि और टीका में इन दोनों गाथाओं से सबन्धित कथा का उल्लेख नहीं है। ये गाथाएं दनि गा ९५, ९६ की संवादी हैं। इन गाथाओं से संबंधित कथाएं निशीथ पूर्णि में विस्तार से मिलती हैं।
१९. उत्तराध्ययन के अकाममरणीय अध्ययन की नियुक्ति में २०३ से २२७ तक की गाथाएं प्रक्षिप्त अथवा बाद के किसी अचार्य द्वारा रचित होनी चाहिए क्योंकि आगे के अध्ययनों में नियुक्तिकार ने किसी