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इस प्रयास में पुनरावृत्ति के दोष से पूर्णतः बचा नहीं जासका । इसके लिए हमें दोषी नहीं ठहराना चाहिए क्योंकि पुनर वृत्ति जानबूझ कर की गयी है ताकि वेदान्त-प्रेमी इस अध्यात्म-विद्या की मुख्य मुख्य बातों से, इस पुस्तक के एक ही अध्ययन से, परिचित होसके । ___स्वामी जी महाराज की वाग्धारा इतनी प्रबल एवं वेगमयी है कि हम उनके सभी विचारों का ज्यों का त्यों लेखनी-बद्ध नहीं कर सके। इस संस्करण में केवल उन तथ्यों का विस्तृत उल्लेख वि.या गया है जिनका श्री स्वामी जी के प्रवचनों से संकलन किया जा सका है। महाराज ने कृपा करके उन्हें देख कर कहीं-कहीं परिवर्तन करने का सुझाव दिया है जिसके लिए हम उनके आभारी हैं ।
___ इस ग्रन्थ के लगभग ४ वर्ष बाद इसका हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किया जा रहा है। पाठकों को यहाँ हमारे पूज्य स्वामी जी के गुरुदेव वन्दनीय एवं प्रातःस्मरणीय तपो-निधि श्री स्वामी तपोवन जी महाराज का दिव्य संदेश पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त होगा। पूज्य गुरुदेव के अंग्रेजी भाषा में भेजे गये श्राशीर्वाद का हिन्दी रूपान्तर यहाँ दिया गया है । हमारी प्रबल इच्छा थी कि हम वेदान्त-शिरोमणि गुरुदेव स इस संस्करण के लिए अलग 'सन्देश' देने का निवेदन करते किन्तु उनके समाधिस्थ होने के कारण हम उनकी 'आशीष' से वंचित रहे । इस पाथिव शरीर का त्याग करने के बाद भी पूज्य गुरुदेव हम सबमें व्यापक रूप से रहते हुए हमारा पथ-प्रदर्शन कर रहे हैं, यह हमारी प्रबल धारणा है। गुरुदेव के चरणों में बैठ कर उन्हीं के मुखारविन्द से वेदान्त के गूद रहस्यों को सुनने तथा हमारे हृदय-पटल को प्लावित करने वाले श्री स्वामी चिन्मयानन्द जी महाराज सौभाग्य से विद्यमान हैं । हमें पूर्ण आशा है कि उनका अनुपम-सन्देश हमें अपने वास्तविक स्वरूप की झाँकी लेने में समर्थ बनायेगा और हम अपने सनातन-धर्म के दिव्य सन्देश को सुन कर अपने जीवन को कृत-कृत्य कर पायेंगे।
इस संस्करण के द्वारा यदि हमारे श्रोताओं एवं पाठकों को अपने यथार्थ रूप की अनुभूति करने की प्रेरणा मिले तो हमारा यह
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