Book Title: Mandukya Karika
Author(s): Chinmayanand Swami
Publisher: Sheelapuri

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दो शब्द माण्डूक्योपनिषद् का हिन्दी संस्करण पाठकों की सेवा में उपस्थित करते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है। दिल्ली उपनिषद् ज्ञान-यज्ञ, जिस का उत्तर काशी के तपस्वी श्री स्वामी चिन्मयानन्द जी महाराज की अध्यक्षता में पहले-पहल (१६५३ में) आयोजन किया गया था, इस यज्ञमाला का तृतीय पुष्प था । दिल्ली का यह यज्ञ १२ सितम्बर, १९५३ से ११ दिसम्बर, १६५३ तक (६१वें दिन) रहा जिसमें 'माण्डूक्य पनिषद्' और महषि गौड़पाद की कारिका पर श्री स्वामी जी के ओजस्वी प्रवचन हुए । १० प्रमुख उपनिषदों में, शैली एवं विषय की दृष्टि से, माण्डूक्य तथा कारिका को कठिन माना जाता है और साथ ही यह दूसरे ग्रन्थों की अपेक्षा अधिक लम्बा है। स्वामी जी महाराज द्वारा दिये गये प्रवचन प्रति सप्ताह एक पुस्तिका के रूप में छाप कर वितरित किये गये। इस तरह दिल्ली की ज्ञान-यज्ञ समिति ने कुल तेरह पुस्तिकाएँ प्रकाशित की जो वेदान्तप्रेमियों को निःशुल्क दी गयी । बाद में श्रोताओं के अनुरोध पर इन तेरह पुस्तिकाओं को एकत्र कर के एक पुस्तक का आकार दे दिया गया। पहली तीन पुस्तिकाओं में स्वामी जी द्वारा प्रति दिन दिये गये निर्देशों का समावेश किया गया। बाद में इन्हें 'ध्यान और जीवन' पुस्तक के नाम से प्रकाशित किया गया । शेष आठ पुस्तिकाओं में माण्डूक्य कारिका का उल्लेख किया गया। इन्हीं पुस्तिकाओं को अब प्रस्तुत पुस्तक का कलेवर दे कर पाठकों के हाथ में पहुँचाया जा रहा है। हर मंत्र के नीचे उसका अर्थ दिया गया है जो शाब्दिक न हो कर अधिक व्याख्यात्मक हैं, जिससे पाठक उसे भली भाँति समझ सके। अर्थ देने के बाद उस मंत्र का प्राशय तथा रहस्य विस्तार से दिया गया है। For Private and Personal Use Only

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