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महापुराण
[ ४०.२. २०
जिणमसंसयपहं
पणविवि सयंपहं। जायओ जइवरो णिम्मम णिरंबरो। "सहिवि तवतावणं धरिवि सुहभावणं । जिणगुणणिबंधणं मुवणयलखोहणं। चिणिवि "सुहसंपयं धुणिवि भवभवरयं । उवसमविहूसणं करिवि संणासणं । "अवियलियसंजमो मरिवि मुणिपुंगमो। पढमगइवेयए
"पढमयणिकेयए। विस्सुयसुदंसणे
दुक्खविलुसणे। अहम मरवइ हुओ भविययण संथुओ। घत्ता-तेकीस अणूणई जलहिममाणई आउ णिबद्धउं सुरवरहु ।।
बिहिं रेयणिहिं जुत्तउ अद्ध णिरुत्त उ तणुपरिमाणु वि भणिउं तहु ॥२।।
5.
तेवीसवरिसंसहसहिं असइ वण्णे भावेण वि सुकिलउ णउ गेयश्वज्जसरकलयलउ पाविट्ठ दु8 जहिं णत्थि जणु णाणे जाणइ सुरणरणियइ तं तेत्तिउ वैदृइ णिट्ठियां
तेत्तियहिं जि पक्खिहिं ऊससइ। विलुलंतहारमणिमेहलठ। णउ णारि ण हियवइकलमलउ । जो जो दीसइ सो सो सुयणु । सत्तमणरयंतु जाम णियइ । जांवासेसु तहु णि ट्ठियउं ।
प्रणाम कर वह निर्मम दिगम्बर यतिवर हो गये। तपकी तपन सहकर और शुभभावना धारण कर त्रिभुवनतलको क्षुब्ध करनेवाले जिनगुणोंका निबन्धन कर शुभ सम्पदाका चयन कर, भवके भय
और पापको नष्ट कर, उपशमसे विभषित संन्यास धारण कर. अविगलित संयम वह मनिश्रेष्ठ मरकर प्रथम ग्रेवेयकके दुःखोंका नाश करनेवाले प्रथम विश्वप्रसिद्ध सुदर्शन विमानमें, भव्य जनों द्वारा संस्तुत अहमेन्द्र देवके रूपमें उत्पन्न हुआ।
पत्ता-उस सुरवरके तेईस सागर प्रमाण पूरो आयु थी। ढाई हाथ ऊंचा उसके शरीरका प्रमाण था । वह भी मैंने निश्चयपूर्वक कहा ॥२॥
तैंतीस हजार वर्षमें वह भोजन करता । और उतने ही पक्षोंमें ( अर्थात् साढ़े ग्यारह हजार वर्षों में ) श्वास लेता। रंग और भावमें वह शुभ्र था। उसपर हार और मणिमेखला झूलती थी। उस प्रेवेयक विमानमें कामदेवका कोलाहल नहीं था, और न स्त्री और हृदयमें पाप था। वहां पापिष्ठ और दुष्ट लोग नहीं थे। जो दिखाई देता था, वह सज्जन था। अवधिज्ञानसे वह सुर और मनुष्योंको जानता था । सातवें नरकके अन्त तक वह देख सकता था। जब उसका उतना समय
१० A सहइ तव । ११. AP सुहसंचयं । १२. A भवभयरयं । १३. AP अविलिय । १४. A
पढमणिक्खेयए: P पढमाणिकेयए । १५. A विहरयणिहि । ३. १. A तेवीससहासवरिसहि; P तेवोससहसवरिसेहिं । २. A सुकिल्लउ । ३. AP वड्दछ ।