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महापुराण
[ ४८.९.१
तं सई हेट्ठामुहुँ जइ वि जाइ उद्धद्ध तो वि भन्वाई णेइ। सक्केण करिवि अहिसेयमदु आणि जिणपुंगमुं रायमदु । णिहियड महएविहि पाणिपोमि इंदिदिरु पप्फुझपोमि । वंदिवि कुमारु भावे विणाणि गउ सग्गावासहु कुलिसपाणि | जायष्ठ जुवाणु देवाहिदेउ कि वण्णमि रूवे मयरकेउ । जसु एक्कु वि देहावयउ णथि मेसैहु उवमिज्जइ केथ इस्थि । किं जिणहु अण्णु उवमाणु को वि कइयणु जंपइ धिहिमइ तो वि । हेमच्छवि संगरभीसणाई तणुमाणे गवई सरासणाई । पुठवह तरुण परिवडंति जा पंचवीससहसाइं जंति । फरिषसहविमाणावाहणेण तांबावेप्पिणु हरिवाहणेण । अहिमिचिवि देवहु पद्द बढ़ णारीगणणे सो वि बद्ध । महि माणंतड पुषहं गयाई पण्णाससहासई णिग्गयाई। तेणेहि दिणिकीलावणंति कीलंते णव कमलोयरंति । धत्ता-खरदंडकरंडि पिडियसणु करलालियर।
'गं सिरिताविच्छु मुख छचरणु णिहालियउ ॥९॥
यद्यपि वह स्वयं नीषा मुख करके जाता है, फिर भी भवों को ऊपरसे ऊपर ले जाता है। अभिषेक कल्याण करने के बाद इन्द्र उन्हें राजभष्ट नगर ले आया। उन्हें महादेवीके करकमलमें इस प्रकार दे दिया, मानो खिले हुए कमलपर भ्रमर हो। तीन ज्ञानके धारी कमारकी वन्दना कर इन्द्र अपने निवास स्वर्ग चला गया। देवाधिदेव युवक हो गये, रूप में कामदेवके समान उनका क्या वर्णन कही परन्तु कामको एक भी शरीरावयव नहीं है। मेषसे हाथीकी तुलना किस प्रकार को जाये ? क्या जिनका कोई दूसरा उपमान है ? फिर भी धृष्टमति कविजन तब भी उपमान कहता है। स्वर्णके समान कान्तिवाले वह शरीरके मानसे युद्ध में भयंकर नब्बे धनुष के बराबर थे। तरुणाई में जब पच्चीस हजार पूर्व वर्ष बीत गये, तो हाथी, बैल और विमानोंको वाहन बनानेवाले इन्द्रने याकर-अभिषेक कर उन्हें राजपट्ट बांध दिया। वह स्वयं भी भारी स्नेहमें बंध गये । इस प्रकार धरतीका उपभोग करते हुए उनके पचास हजार वर्ष बीत गये । एक दिन क्रोडावनमें कोड़ा करते हुए कमलके भीतर उन्होंने
घत्ता-कमल कोशमें करसे लालित और गोल शरीर मरा हुआ भ्रमर देखा मानो तमाल वृक्षका पुष्प हो ॥२॥
९. १. AP भवियाई । २. P पुंगवु । ३. A मसयतु । ४. A हसाई होति । ५. A "विवाणाचाहणेण ।
६. A माणततु । ७. A हयाई। ८. ताणेकरहि । ९. A तं सिरि ।