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पत्ता - f आइच्य पहा
महापुराण
fees समुद्दजलि ता फणिवर दुम्मिय डियर ।। सुरवरिण करुर्ण करेपिणु पत्थियल ||५||
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नायराय पहएं किं आएं मुइमुइ किं फिर कलुस सहार्वे एत्थु ण को विबंधु उ वरिष्ठ जेण सुसीलवंतु संताषिउ किर मुणि तवदुखि तणु तावइ इहु हिंसइइ धम्म पयट्टर तं णिसुविसु मेल्लेप्पि दारणमारणविहिविच्छिण्णउं
लज्जिज्जइहिएण वराएं । पावयम्मु सई खज्जड पावें । पिसुणु ण होइ एहु अक्यारित । मोक्खु तुहार भारु पाचिउ ।
[ ५७.५.१२
किउ तं त शिरु भावई । चजम्मंरु दोहं वि वट्ट । aas अहीसरु सिरु बिरुणेष्पिणु । भणु हि बिर्हि मि हरु संपेपण ।
पत्ता- तणिसुनिषि दरंदरसिदसदिसिइ जंगु धवल करइ । कह देवदिवायराहु फणिहि बहुरस भावहिं वज्जरइ ||६||
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सीह से सीउर महीवइ । रामयेत्तत देवि सलखण |
मारहगोत्तखेत्तरखणव इ सयलका विष्णाणवियक्खण
बत्ता --- हाथ बाँधकर धरणेन्द्र पोड़ित हृदय उस विद्याधरको जबतक समुद्रजलमें फेंके, तबतक आदित्यप्रभ नामक सुरवरने करुणा करके उससे प्रार्थना की ॥५॥
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" हे नागराज, इसको मारनेसे क्या ? इस बेचारेको मारनेसे आपको लज्जा आनी चाहिए। इसे छोड़ो, कलुषित परिणामसे क्या ? वह पापकर्मा स्वयं अपने पावसे खाया जायेगा। इस संसार में न तो कोई भाई है और न कोई शत्रु । फिर यह दुष्ट नहीं है । यह उपकारी है कि जिसने सुशीलवन्तको सताया और उससे तुम्हारा भाई मोक्ष पा गया ? मुनि तपके दुःखसे अपने शरीरको स्वयं तपाते हैं, यदि कोई दूसरा दुःख पहुँचाता है तो वह उन्हें अच्छा लगता है। यह हिंसा करता है और यह (मुनि) धर्ममें प्रवर्तन करता है। लेकिन देहत्याग द्वारा जन्मान्तर दोनोंका होता है।" यह सुनकर और क्रोध छोड़कर नागराज सिर हिलाकर कहता है-छेदन, मारण और भाग्यसे विछोह करानेवाला यह वैर दोनोंमें किस प्रकार हुआ ।
पत्ता - यह सुनकर अपने दाँतोंकी दोशिसे वह जगको धवल करते हैं और आदित्यप्रभ देवकी कथा अनेक रसभावसे नागराजको बताते है ||६||
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सिंहपुर में भरतके गोत्र और क्षेत्रका रक्षणपति राजा सिहसेन था। उसकी समस्त कलाओं
७. AP बाइच्चपहा हे। ८. करुणु करण P
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६. १. P चज त देहविषदृद्द । २. A उप्पण्णवं 1 ३ AP दरवरिमिय । ४. A देवदिवायक तहो;
P देउ दिवायरा |
७. १. AP भारहखेति खेत्तं । २. A रामदत्त ।