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-५१.१२.२]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
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गोविंदो। माणमहतो भणइ हसंतो। मुवि जो मंदो भैई सच्छंदो। मग्गैइ कप्पं तमहं भर्प। करमि अदप्पं किं माइप्पं । अस्थि पराणं खग्गकराणं । दोण्णयमुकं
मोत्तणेक। लंगलपाणि को पहु दाणिं । मई जीवंत वइरिकयंत । वयणं चंडं तं सोऊणं
चार अदीणं । विगओ दूओ हरिसियभूओ। कुंजरगइणो तेण सवइणो। कहिया वत्ता कुरु रणजता। ण करइ संधी लच्छिपुरंधी
लोलो रामो कण्हो भीमो। यत्ता-तक्खणि संणद्धठ अभियधुयघउ रोस कहिं वि ण माइच ॥
इयतूरगहीरें सहुं परिवार महुकीडङ उद्धाइउ ॥११॥
रमणीदमणई जूरियसयणई
रिउआगमणई। णिसुणिवि वयणई।
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तब जिसने राजाओंको नष्ट किया है ऐसा वह मानसे महान् गोविन्द हंसता हुआ कहता है-इस धरतीपर जो मूर्ख और स्वच्छन्द मुझसे कर मांगता है मैं उसको भस्म करता हूँ और दर्पहीन बनाता हूँ। जिनके हाथमें तलवार है, ऐसे शत्रुओंका क्या माहात्म्य ! दुर्नयसे रहित एकमात्र बलभद्रको छोड़कर इस समय कोन स्वामी है ? शत्रुओंके लिए कृतान्त मेरे जीते हुए । कानोंके लिए तीरके समान उन सुन्दर अदीन प्रचण्ड वचनोंको सुनकर जिसको भुजा हर्षित है, ऐसा वह दूत चला गया। हाथीके समान चलनेवाले अपने स्वामीसे उसने यह बात कही कि युद्ध के लिए प्रस्थान कोजिए। हे देव, बह सन्धि नहीं करता, लक्ष्मी और इन्द्राणी स्त्रियों के लिए चंचल कृष्ण बहुत भयंकर है।
पत्ता-मधुकीड़ तत्काल सन्नद्ध हो गया, आन्दोलित ध्वज वह कहीं भी नहीं समा सका। बजते हुए नगाड़ों और परिवार के साथ मधुक्रीड़ दौड़ा ॥११॥
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स्त्रियोंका दमन करनेवाले शत्रुआगमन और स्वजनोंको सतानेवाले वचनोंको सुनकर, ११. १. A तो । २, ममद सईदो । ३. A मंगह। ४. A कवणाजुत्ता । ५. AP महकोलउ ।