________________
४८८
महापुराण
[६७. १५.१
सहि पहिलो दिमितओ बोयनो वि णामेण दत्तओ। खरपयाषभरतसियवासवा बेवि ते णिवा सीरिफेसबा । के वि सिद्धहरिरहविहंगया के विकासकजलणिहंगया। बिहि मि अस्थि महिपंसुपिंजरो खीरसायरो णाम कुंजरो। मग्गिओ सो रायराणा धीरैवइरिसंतापदाइणा। अट्टहास हिमरासिकपणओ तेहिं तस्स सोणेय दिपणओ। ध्यवयणविहिडिओ कली सह चमूह आर्येउ पियो पली । थारु अमरकतारवासिणा दोहिणिझसेढीखगीसिणा। बद्धणेहरसमुणियसाचणा मारलेण केसपइभाषणा। सहिय के वि बंधू वि णिम्गया सह बलेण समराइरं गया। जाययं रणं बलियसमुहा सीरिणा हया वहरितणुरुद्दा । चूरिया रहा वारिया हरी सूरिया धया मारिया करी। णचिया णहे अमरसुंदरी बद्धमछरो धारो अरी। अंतरे भडो संठिओ हरी तेण बोंछिओ खयरकेसरी।
पत्ता-दोहि मि जे कयं विजापहरणं ॥
को तं वण्णए बहुरूष रणं ॥१५||
सनमें पहला नन्दिमित्र था दूसरा भी नामसे दत्त था। अपने प्रस्वर प्रतापके मारसे इन्द्रको सन्त्रस्त करनेवाले वे दोनों राजा बलदेव और नारायण थे। उन दोनोंको क्रमशः सिद्ध रथ वाहिनी और गरुड़ विद्याएं सिद्ध थौं । दोनोंके शरीर कास और काजलके रंगके समान थे। दोनोंके पास घरलोकी घूससे घूसरित क्षीरसागर नामका हाथी था। उसे धीर वैरियोंको सन्ताप देनेवाले राजराजा (बलीत)ने मांगा। अट्टहास और हिमराशिके रंगका वह गज खन लोगोंने उसे नहीं दिया । दूतके शब्दोंसे कलह बढ़ गयो । सेनाके साथ वह बलि राजा वहां आया। अमरकान्तार नगरके निवासी दक्षिण श्रेणोके विद्याधर स्वामी बढस्नेहके स्वादको जाननेवाले मामा केशवतीके भाईके साथ वे दोनों भाई भी निकल पड़े । सेनाके साथ दोनों समरांगणमें गये। उनमें रण हुआ। बलि (बलोन्द्र राजा) के सम्मुख बलभद्रने शत्रुके पुत्रका काम तमाम कर दिया, रयको चूर-घर कर दिया। घोड़ेको फाड़ डाला । ध्वज फाड़ डाले । हायोको मार डाला। अमरसुन्दरो आकाशमें नाच उठी। तब मस्सर बांधता हुआ शत्रु दोड़ा। वह योद्धा और हरिके बीच स्थित हो गया। उसने विद्याधर राजाको भत्सना की।
पत्ता-दोनोंके द्वारा जो विद्याओं का अपहरण किया गया है, ऐसे उस बहुरूपी रणका कोन वर्णन कर सकता है ? ॥१५॥ १५. १. A हुवा । २. AP वि । ३. AP पोर । ४. AP बारमो । ५. A दाहिणल । ६. A दुछियो ।