Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 507
________________ अँगरेजी टिप्पणियों का हिन्दी अनुवाद सन्धियोंकी टिप्पणियों के सन्दर्भ रोमन अंकोंमें है, अब कि कड़वकों और पंक्तियों के अरबी अंकोंमें । वण्यविषयका संक्षिप्त सार प्रारम्भिक परिचय दिया गया है, जिससे पाठक मूलपाठको समझ सकें। ये टिप्पणियों उन संस्कृत टिप्पणियों की पूरफ है जो अष्टके नीचे पाठ टिप्पणके अपमें दिये गये हैं। टीप्रभाचन्द्र के टिप्पणके लिए है। XXXVIII 1. 125 भवजसोहो-सूर्यसे उत्पन्न किरणोंकी शोभा धारण करनेवाले, 26 प्रकाशयामिप्रकाशित करता है या व्यक्त करता है। पयासयाभि- इसे समझना आसान है-परन्तु 'क' प्रति कभी-कभी ऐसे रूपोंको यरोक्ता देती है । तुलना कीजिए-बादकी पंक्तिसे (समासवि) साथ ही हावि और अमरवि । पापकी 10-11 पंक्ति या तीसरी पंक्तिमें परिच्छवि और ओहच्छवि, तीसरे कडवककी आठवीं पंक्ति । 2. 15 महवयदियहई-कुछ दिनोंके लिए। 24 णिग्विष्णत निविण्ण-वदास । णिविणोउ अर्थात् निविनोद । 'क' प्रतिका यह पाठ पढ़ने में समान रूपसे ठीक है और इसका अर्थ हो सकता है काष्यरचनाके विनोदसे रहित । परंतु मैंने णिविष्णत पाठको उम्मेठ मि विस्वर जिरारिज पाठके दृष्टिकोण ठीक समशा हे, जो 4 के 94 में है, और टिप्पणके विचारसे भी। 9-10 खलसंकुलि कालि-इत्यादि, भरत जिसने सरस्वती ( विद्याकी देवी ) का उद्धार किया, जो रिस अत्यन्त, या खतरनाक रास्तेपर आ रही थी। ( शून्य सुशून्य पपमें ) अथवा परे समयमें, (खाली आसमानमें ) जो दुजनोंसे व्याप्त है ( जल संकुलि ) । और सोदे चरित्रवाले लोगोंसे भरा है ( कुसोलमा ) । पसे विनय करके । Modesty विनय । 3. अयणदेवियवतणुजाएं-भरतके द्वारा जो अइवण ( एयण ) और देवि अवाका पुत्र था। 25 बुरिषयमितें-भरतके द्वारा, जो उन लोगोंका मित्र था, जो संकटमें थे। 30 मई उक्यारभावु णिमहणे-भरतके द्वारा, जिसने मुक्षपर उपकारोंको वर्षा की। [ फवि पुष्पदन्तपर ], भरतने पुष्पदन्तको किस प्रकार उपकृत किया, यह, महापुगणके I. 3-10 कड़वकोंमें देखा जा सकता है, और जिल्द एक को भूमिकामें देखा जा सकता है। pp-XXVIIII 10 तुह सिद्धदि इत्यादि । तुम नबरसोंका दोहन क्यों नहीं करते, अपनी वाणीरूपी कामधेनुसे । अथवा काव्यात्मक पाक्तिसे जो तुम्हें सिट है, या जिसपर तुम्हारा अधिकार है। 4. १ राउ राउ णं संशहि केरउ-राजा, सन्ध्याफे अश्ण रागकी तरह है, अर्थात् पोड़े समय ठहरनेवाला है, 8 एक्कु वि पर वि रएवउ भारठ-एक पदकी रचना करना भी बहुत बड़ा कार्य है। 10 जगु एस इत्मादि-संसार गुणों के साथ वक्र है जिस प्रकार कि पनुष पर गोरीपर सींचा जाता है। 5. 7b-38 कबिके अनुसार भरत सालवाहन (सातवाहन ) से बढ़कर है, इस बात कि भरत कवियोंका लगातार मित्र रहा है ( अणवरयरइयकइमेत्तिह) + ab-यहाँ कवि उस किस्सेका सम्दर्भ दे रहा है कि राजा श्रीहर्षने कालिदासको अपने कन्धोंपर उठा लिया था । ऐतिहासिक दृष्टिमे यह सम्दर्भ पूसरोंसे भी समानता रखता है, जिनका कि भोवप्रथम्पमें उल्लेख है। श्रीहर्षकी जो बाणभट्टका आश्रयदाता है राजगद्दी

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