Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 516
________________ ५२० महापुराण [ LII5.46 पृयवयणहि-ऋ पृय में है जो प्रियके रूप आनी चाहिए, सम्भवतः यह हेमचन्द्र के नियम अभूतोऽपि क्वचित, ( 399 ) का बढ़ाव है । 6. 13 जसु अमु-यस्य यश:--जिसका यश । 7.86मिगवइयहि जाएं–मगावती के पुषके द्वारा । यानी त्रिपष्ठ के द्वारा । 9a संघालेबी-कर्मचाम्पका सम्भाव्य कृदन्त रूप है, तुलमा कीजिए-पालेवी जणेवी, परिणेदी इत्यादिसे । हेमचन्द्र 4.38 नियम इसके लिए एषा रूप देते हैं जो तव्थका स्थानापन्न है । वे एवी का उल्लेख नहीं करते ।। 9. 13-14 णियजणणविष्णु --पंक्तियों का अर्थ है कि अर्क कीति अपने पिताको भौहोंके संकेतोंको समझते हुए राजा प्रजापतिके पास गया और इस प्रकार उसे प्रणाम किया। 10. la हरियहि---त्रिपृष्ठ और बल के द्वारा; समुन्ड ( श्वसुर ), विपृष्ठका होने वाला ससुर । 12. 2-5 पु ... नहीं किए परन्त ( निष्ठ) से कहा-हम देखें और पत्थरफे गोल खम्भे उठायें और मुझे बताये कि क्या तुम अश्वग्रीषकी हत्या कर सकते हो। 15. 14 अह सो सामण भणहूं ण जाह-उसे सामान्य व्यक्ति नहीं कहा जा सकता । LII 1, 2 चिरभववइरवसु-पूर्वजन्मके वरके प्रभावसे कि जब वे विश्वनन्दी और विशाखनन्दी थे। 4. तिखंडालोशिपर मेसर-तीन खण्ड घरतीके चक्रवर्ती । अश्वग्रीव अर्धचक्रवर्ती था । 5. 45 विजाहर भूपरभूमिणाहु---विद्याधरभूमि और मनुष्य भूमिके स्वामो। अर्धचक्रवर्ती अश्वग्रीव । ____7. a मा रसउ काउ चप्पिवि कवालु--आदमोके सिरपर कोएका बैठना और कांव-काव करना आने वाली मौतका संकेत है। 0. 2 करगय-स्वर्णका हार देखने के लिए सुम्हें दर्पण क्यों चाहिए कि जो तुम्हारे हायमें है। वह प्रसिद्ध लोकोक्ति है, 5a भरहह लग्गिवि-भरत चक्रवर्तीके समयसे लेकर, प्रथम चक्रवर्ती । 11 रणु बोल्लंतहुं चंगजे-युद्धकी बात करना आनन्ददायक है । तुलना कीजिए कि युद्धस्य कथा रम्या । 3. किंकर णिहणंत जस्पिाय-अनुचरों को मारने में कोई आकर्षण मा आनन्द नहीं है । अश्वग्रीव त्रिपृष्ठसे लड़नमे प्रसन्न था, उसने सोचा कि छोटे व्यक्ति या अनुचर से लड़ने में कोई मजा नहीं है। 15 सारंग का 'टी' में बलवान् अर्थ किया गया है । परन्तु लगता है कि विटको बासुदेव होने के कारण शृंगका बना धनुप रखना चाहिए, विष्णु को शाबर नहा जाता है-हिन्दू-पुराण विद्या | हिन्द-पुराण विद्यामें विल्गुके दूसरे प्रतौफ है पांचजन्य, कौस्तुभमपि, असि, कौमोदको गदा, गरुडध्वज और लक्ष्मी 1 जैनपुराण विद्यामें ये प्रतीक वासुदेवके भी माने जाते हैं और इसलिए मैं सोचता हूँ कि सारंगधनुका अर्थ शार्ङ्गधनु होगा। 10. 4-6 यह पंक्ति कलदेवके हथियारोंका वर्णन क. ती है, ये है गिल, मुसल और गदा जो चन्द्रिमा कहा जाता है। 11. 2 सगाड़िवो-गरुड़, जो वासुदेव या विष्णु के वजका प्रतीक है । 8a णिच्चिच्चे -मोटा और ऊँचा । 'टी' के अनुसार यह मुहावरा निम् + उच्च से बना । सम्भवतः कि नित्य + उच्च से बना हो, उन्न उंच होता है, अथवा उच्च + उच्च; इसका अर्थ है अन्त तक खड़े बाल, जो हमेशा खड़े रहते है। _12. Ba-6 भडु इत्यादि- पोद्धा कहता है यदि मेरा मस्तक भी गिर जाता है तो भी मेरा धड़ शत्रुका वध करेगा और नाचेगा ।

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