Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 522
________________ 526 महापुराण ( LXVI 11. 84 जिउ जिणवररिसि सोतिउताबराणा जिन साधु बना अब कि ब्राह्मण तपस्वी / अर्थात् वैदिकधर्मका अनुयायी सापक बना / विशेष रूपसे वह विवकी भक्ति के सिद्धान्तोंका अनुमायी बना। 12. 6-7 गच्चा देउ---इन पंक्तियों में शिरके चरित्र की विशेषताओंका वर्णन है कि जो ताण्डव नृत्य करते हैं, और जो पार्वतीको रखते हैं / इमरू बजाते हैं, त्रिपुर को जलाते हैं, और राक्षसोका संहार करते हैं / जिनवर कहते है कि ऐसी ईश्वरता संसारसे नहीं बचा सकती। ___13. 6 तावसमासुरवासि रसति-विड़ा-चिड़िया के जोड़ने दाढ़ीमें घोंसला बना लिया साधुकी और वे उसमें गाते है। 16. 1-2 इन पंक्तियोंमें कान्यकुरुज नगरका नाम है। क्योंकि उसमें सा से विवाह नहीं करनेएर कम्पादोंको शापके कारण 'बोनी' बनना पड़ा। 24. 1 वत्तिय सपलु वि छारु परतिवि-सभी क्षत्रियों को जलाकर खाक कर देनेवाले / परतिवि परत्तसे बना है जो देशो है, और जो आधुनिक मराठीमें सुरक्षित है। LXVI 1. 9a विहवतणदुक्खोहरियछाय-वधव्यके कारण उत्पन्न दुखते उसके शरीरको कान्ति पालो गयी। 105 पर ताज ण पिच्छमि-परन्तु मैं अपने पितासे (सहस्रशहुसे) नहीं मिलती / 5.56 कोसलं पुरं--कोसलपुर अर्थात् साकेत, जो कोसल राज्यको राजधानी है। 6. 3 परमेशर - अर्थात् सुभौम, जो बाद में चक्रवर्ती होनेवाले थे। 10b एक जि-पिताले पाँवोंसे पकड़ा हा मिट्टीका प्लेट इस प्रकार चक्र में बदल गया। 10. 100 सम्मंतरि-( दवभ्रान्तरमें ) नरकमें / LXVII ___4. 6 हिरण्णगमो-- जिन-हिरण्यगर्भ शब्द हिन्दूपुराण विद्या ब्रह्मासे भेद जताने के लिए है परन्तु जैनपुराण विधामें यह तीर्थकरका वाचक है / 9. 1 दिणि छपके विच्छिण्णए-दीक्षाके छह दिन बाद। अर्थात् पौष कृष्ण द्वितीया दिन महिलने केवलज्ञान प्रार कर लिया / गुणभद्र भी इस विपिको इस रूपमें देते है। __13. 11 पिसुणमहतो-पिशुन नामका मन्त्री, जिसने राम-विरामके बारेमें उनके पिता 'वीर' को गलत सूचना वी; यह बलि हुआ। 14. 48 वाणारासि-वाराणसी, छन्दके कारण तीसरे अक्षरको दीर्घ किया गया /

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