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महापुराण
[६१. १०.५
पालिय अहिंस वयोण तासु अण्णेक्कु धर्मचक्कोववासु । दिण्ण सुव्वयखंतियाहि दाणु आहारवमणि विदिगिछठाणु । सम्मत्ताभावे कयउ बालि मोहेण पडइ जणु जम्मजालि ।
सोहम्मसग्गि सामण्णदेवि होइवि मुय माणुसदेह लेवि । १० हूई व मियारिहि तणिय पुत्ति जं दिट्ठी पिठख यदुहपवित्ति ।
धता-तं वयणीवमणविणिंदणटु फलु पई सुइ अणुहुँजियखं ।।
हियउल्लघं जणणहु रणि वडिउ दिएर रुहिरे मंडियं उं ॥१०॥
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तं णिसुणिवि हरि बल णिय घरासु गय कण्ण लेदि पहेयरिपुरासु । गोबिंदतण कइकामधेणु . सिवमंदिक गयउ अणंतसेणु । रिउसुन तं तह पइसहं ण देति । करवालहि मूलहिं उत्थरति । कंचणसिरियहि संरंभगाद भायर सुघोस पर विज्जदाद । आवेप्पिणु चवलाजहकरेहि ते चे वि णिहय हरिहलहरेहि। सोयरिंग दड्डु सरीररुक्षु असई ति सबंधवपल्यदक्व । बलकेसन पस्थिवि गय कुमारि जिणु णविवि सर्यपहणाणधारि ।
सुप्पहहि पासि थिय संजमेण गणणिहि संतिहि कहिए कमेण । पर शोलबाह और सर्वपशोक साधुके दर्शन किये। उनके उपदेशसे उसने अहिंसा धर्मका पालन किया ! तया एक और धर्मचक्र उपवास किया। सुव्रता नामक आयिकाको दान दिया। उसने आहारको वमन कर दिया ( लेकिन ) सम्यक्त्वके अभाबमें (आपिकाके द्वारा) आहारवमनको उस बालाने घृणाका स्थान माना। जन मोहके कारण जन्मजाल में पड़ते हैं। सौधर्म स्वर्ग में सामान्य देवी होकर, यहाँसे मरकर मनुष्य शरीर धारण कर वह दमितारिकी पुत्री हुई और इसलिए पिताके विनाशके कारण दुःख प्रवृत्ति उसने देखी।
पत्ता-उस आर्या सुव्रताके वमनको निन्दाका फल उसने भोगा। और युद्ध में मारे गये अपने पिताको रक्तसे सना हुआ देखा ॥१०॥
११
यह सुनकर बलभद्र और नारायण कन्याको लेकर अपने घर प्रभाकरीपुरोके लिए चले गये । गोविन्दपुत्र, कवियों के लिए कामधेनु अनन्तसेन शिवमन्दिरके लिए गया । लेकिन शत्रुपुत्रों (सुघोष और विद्यदंष्ट्र) ने उसे नगर में प्रवेश नहीं करने दिया। वे तलवारों और शूलोंको लेकर उछल पड़े। हिंसाके संकल्पसे दुनु ये दोनों कनकीके श्रेष्ठ भाई थे। तब अपने हाथों में चंचल आयुध लिये हुए उन दोनों ( बलभद्र और नारायण ) ने उन दोनोंको मार डाला। उस ( कनकधी) का शरीररूपी वृक्ष शोककी आगसे जलकर खाक हो गया। सम्बन्धियोंके विनाशका दुःख नहीं सह सकने के कारण बलभद्र और नारायणसे प्रार्थना कर ( अनुमति लेकर ) कनकधी ज्ञानधारी स्वयंप्रभ मुनिको प्रणाम कर उपदिष्ट क्रम और संयमके साथ शान्त सुप्रभा आयिकाके
४. K धम्मु। ५. AP यिजिगिछ। ६. A तें वइणीव'; P तं वइणीव । ७. AP अणुइंजिन ।
८. AP रंजिय। ११. १, AP पपरपुरासु।