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महापुराण
अवरोहह अक्यतलि थाउ छट्टववासिउ मोहें मुकठ । जायउ केवलि केवलंदसणि ऑयज भेसेइ अंगौरउ सणि । धरणु बरणु ससि तरणि धणेसर पवणु जलणु भावेण सुरेसर । थुणइ अणेयहिं थोत्तपउत्तिहिं समवसरणु किउ विविहवित्तहि । तेत्थु णिसण्णएण तं सिड जं अपरेहिं मि देवहिं दिवट । पाणिरूवि अज्जीव पयासिय रूविर्खधदेसाइवि भासिय । मग्गणगुणठाणाई समासिय जीव सकाय अकाय षि दरिसिय । सत्तपंचणवछविड्भेयई
एयई अवरई कहिय पोय। तहु संजाया वहिं मलियकर गणहर तीस रिद्विषुद्धोसर।। गणमि दहुत्तर वम्महदमणहं तिण्णि तिषिण सय सिक्खुय र्सेवणहं। पत्ता-पंचतीससहसई भणु अहसयई कियई ।।
तीसणिउत्सई जाणसु मुणिहिं वयंकियई ॥७॥
एत्तिय आहेणााण तहु हयकाले जिणवरचरणुष्णामियसीसई मणपजयधराहं वरचरियह
दुसहस वसुसय साहिय केवलि। दोसहसई पणवणविमीसई। चउसहसई तिसय चिकिरियहं ।
अपराहमें आम्रवृक्षके नीचे स्थित हो गये और छठे उपवासके द्वारा मोहसे मुक्त हो गये। केवलदर्शनी वह केवली हो गये। बृहस्पति, मंगल, शनि, धरण (नागकुमारोंका इन्द्र), वरुण, शशि, सूर्य, धनेश्वर (कुबेर), पवन, अग्नि और इन्द्र भावपूर्वक बहाँ आये । वह अनेक स्तोत्र प्रवृत्तियोंसे स्तुति करता है और अनेक विभाजनोंके साथ समवसरणको रचना करता है। वहां विराजमान उन्होंने वह कथन किया जो दूसरे देवोंने भी देख लिया। चार द्रव्यों (धर्म, अधर्म, आकाश और काल ) का निरूपण कर उन्होंने अजीव तत्त्वका प्रकाशन किया। उन्होंने द्रव्यके स्कन्ध और देशका भी कथन किया । संक्षेपमें मार्गणा और गुणस्थानोंको चर्चा की। सकाय-अकाथ जीवोंको भी दरसाया। सात, पांच, नौ और छह भेदवाले इन और दूसरी ज्ञेय वस्तुओंका कथन किया । वही उनके हाथ जोड़े हुए तोस गणधर हुए। कामदेवका दमन करनेवाले ग्यारह अंगों और चौदह पूरोंके पारी छह सौ मुनि थे।
पत्ता-बसोंसे अंकित शिक्षक मुनि पैंतीस हजार माठ सौ तीस थे, यह पानो ||७||
पापको नष्ट करनेवाले अवपिज्ञानी अट्राईस सौ थे। केवलज्ञानी भी इतने ही अर्थात् बट्ठाईस सौ। जिनवरके चरणों में सिर झुकानेवाले मनःपर्ययज्ञानी दो हजार पचपन थे। श्रेष्ठ ७. १.A भेसह । २. AP अंगारय । ३. AP पोरूवि । ४. AP सभणहं । ५. पंचबोस । ८. १.AP एतिय तीयणाणि; T तयगाणि ।