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सोउं जस्ल सुख्खामयं पुरिसा किलधामयं आयंबुलकर हं णिम्मलत्तणिरसियनई वो तस्सेव य कई
सोयरेस धीरो' जियपरमंडलो कोसेणं वसवणओ
महापुराण
पत्ता -- पढमइ दीषइ सुरगिरिपुषइ ॥ सोहादिष
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रायो रुवी विद सरो । विवेणं आईडलो !
णामेणं वस्रवणओ ।
सिदिय धणं केरुहरयधूसरो साम पवासियविद्दिरो थरथरणहो फुल फुलयकबओ जीरपूरपूरियधरो पचो वासारतो बावियसिलिणड़ो
तू मोहामयं । पत्ता णाणसुधामयं । भयवंसं जियकरणहं । तं मणिमिण है । इयर मोक्खविही कहूं ।
कीलावणं ।
म जाम पुइसरो ! सुरमंडियजलधरो । अच्छाइयदसदिसिहो । वियसायिदालियो । किकिरीण सुकरो | दूरं कंको मत्तओ । बिज्जुजलज लिओ वडो ।
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हैं, जिनके श्रुतरूपी अमृतको सुनकर, मोहरूपी व्याधिको नष्ट कर लोग ज्ञानरूपी सुधासे युक्त निष्कलधाम ( मोक्ष ) को प्राप्त हुए हैं, जिनके हाथोंके नख लाल और उज्ज्वल हैं, जो ज्ञानवान् और अपनी इन्द्रियोंका घात करनेवाले हैं, जिन्होंने निर्मलता में आकाशको तिरस्कृत कर दिया है ऐसे उन मल्लिनाथको में नमस्कार करता है और उन्होंको कथाको कहता हूँ ।
पत्ता - प्रथम जम्बूद्वीप के सुमेरुपर्वतकी पूर्व दिशामें शोभासे दिव्य चन्द्रदेश में – ||१||
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वीतशोक नगरका स्वामी राजा ( वैश्रवण ) कामदेव के समान सुन्दर था। धीर और शत्रुमण्डलको जीतनेवाला जो वैभवमें इन्द्र, घनमें कुबेर और नामसे वैश्रवण था। दूसरे दिन सचन क्रीड़ावनमें जाकर कमलपरागसे धूसरित वह राजा कोड़ा करता है तो इतनेमे प्रवासियों के धैर्यका हरण करनेवाला जिसमें इन्द्रधनुषसे मेघ मण्डित हैं, आकाशसे बड़ी-बड़ी बूँदें गिर रही हैं, दसों दिशापथ आच्छादित हैं, जिसमें कदम्ब वृक्ष विकसित और पुष्पित हैं, जिसने कुकुरमुत्तोंको विकसित कर दिया है, जलोंसे धरती प्लावित है, जो सुअरों ओर गजोंसे सुन्दर है ऐसी वर्षाऋतु आ गयो, बगुले दूर हो गये हैं। जिसने मयूरकुलरूपी नटों को नचाया है ऐसा वटवृक्ष
५. A णविऊण ।
२. १. A यं वें जियसरो । २. AP बी ३ AP असं । ४. APजलहरो । ५. APP थिर्भ ।