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महापुराण जंबूदीवसुरीयलि पुम्वविदेहवरे
विशलि सुकन्छामणवा सिरिहरि सिरिणयरे । तडिकरालअसिधारावासियसयलखलो
पयपालो पुदईसो पोसियपुहायलो। णिसिसमए णं एक हाहसियं
सिषगुप्तस्स समीवे मुफियं तेण फियं । यारहविहतवचरणे इंदियमयहर
मुकाहारसर सल्लेहणमरण । जायच अपवुयकप्पे अमरो मरिऊर्ण
सगसिहरभवणाओ पुणु ओयरिऊर्ण । इह भरदे कासीए वाणारसिणाहो
आइवेवकुलतिलो पटु पंकयणाहो । मझे खामा सामों रामा तस्स सई
जाओ देवो पोमो वाणं सुखमई। तीसवरिससहासर धणुबावीसतणु
णयसंणिहियणरोहो पशु पं घरममणु । गंगासिंधूणविओ साहियमाहियमरो
'णिहिरयणालंकारो णवमो पहरो। पत्ता-पुहईसुंदरीपमुहस धीय ॥
अट्ठ वि सिहँउ सुद्छु विणीयच ॥११॥ लिए शुभकर है ऐसी चक्रवर्ती कथाको सुनो। जम्बूद्वीपके सुमेरुपर्वतके श्रेष्ठ पूर्वविदेह में अत्यन्त विशाल कच्छावती देशमें लक्ष्मीको धारण करनेवाले श्रीनगरमें प्रजापाल नामका पृथ्वीश्वर है जो बिजलीके समान भयंकर बसिधारासे समस्त शत्रुओंको त्रस्त करनेवाला है और पृथ्वीतलका पालन करनेवाला है। रात्रिके समय आकाशसे गिरते हुए तारेको देखकर उसने शिवगुप्त मुनिके समीप बारह प्रकारके तपके आचरणके द्वारा इन्द्रियों के मदका हरण करनेवाला पुण्य किया सपा छोड़ दिया है आहार और शरीर जिसमें ऐसा सल्लेखना मरण किया। मृत्युको प्राप्त होकर वह अच्युत स्वर्गमें उत्पन्न हुआ। स्वर्गके विमान शिखरसे अवतरित होकर वह पुनः इस भारतवर्षके काशीदेशमें वाराणसीका राजा हुआ-इक्ष्वाकुकुलका तिलक स्वामी पद्मनाभ। उसकी सती स्त्री सुन्दरी मध्यमें क्षीण थी । उनका शुमति पत्र नामका पुत्र उत्पन्न हवा । सीस हजार वर्ष उसकी आयु पो । बाईस धनुष उसका ऊँचा शरीर था। वह लोगोंको न्यायमें स्थापित करनेवाला मानो अन्तिम मनु पा। जिसने गंगा और सिन्धु नदियोंको सिद्ध किया है, परती और देवोंको सिद्ध किया है, जो निषियों-रत्नों और अलंकारोंसे युक्त है, ऐसा वह मौवा पावर्ती था।
__ पत्ता-उसको पृथ्वीसुन्दरी प्रति कन्याएं यों जो आठों ही अत्यन्त विनीत कही गयी हैं ॥११॥
२. A सुरालए। ३. A विदेहि वरे। Y. A उपचहसियं। ५.A रामा लामा तस्स । ६. A सहसा । ७. A सिद्धच ।