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महाकषि पुष्पदन्त विरचित कुणइ विवाहपवर्ण पेच्छा कुरो पट्टणं। परिहापाणियदुग्गम बहुदुवारकयणिग्गर्म ।
मघडियपायारयं पवरहालयसारयं। पोमरायफयभारण उभियधुयधयतोरणं। हसियणिसावइतिचं पेच्छतो घरपंतियं । सरइ पहू अवराइयं सुक्यं मधु पुराइयं । खीणं तेण विमाणयं मुकं अहमिदाणर्य। एम्हि होही कि थिर गरजम्मे जयरं घरं। पत्ता-छत्तायारयं सिवमहिमंडलं ॥
करमि ववं परं लहमि घुवं फलं ॥७॥
Kannarava
ता सारस्सयभासिय
सोऊणं सुइमीसियं । कुंमणिवस्स य आणुसहो तरुणीणं विवरंमुहो। इंदणं ससहरमुहो
पहनिनो दिखायो। जयणे जाणे थपाओ
कुवलयकुमुरामियंकयो। कामेसु सुषिरत्तो
सरयषणं संपत्तो । जन्मदिणे गक्खतए
पक्खे तम्मि पहलए। णिववरतिसेयइए जुओ मोहणिबंधाओ चुनो। सायण्हे सुतवे थिओ
णाणपक्षणकियो। विवाहके लिए प्रवर्तन करते हैं। कुमार नगरको देखते हैं कि जो परिखा और पानीसे दुर्गम है, जिसमें बाहर जानेके अनेक द्वार हैं, जिसके परकोटे स्वर्णरचित है, जिसमें श्रेष्ठ और विशाल अट्टालिकाएं हैं, जो पपराग मणियोंकी भाभासे युक्त हैं, जिसमें हिलती हुई ची पताकाओंके सोरण है। गृह-पंक्तियोंको देखते हुए कुमार मल्लि अपगजित विमानको याद करता है। मेरा पुरातन पुथ्य क्षीण हो गया है उसीसे अहमेन्द्र विमानसे मैं मुक्त है। इस मनुष्य जन्मके नगर और घर क्या स्थिर रहते हैं?
पत्ता-मैं केवल तप करूंगा और छत्राकार शिवमहीमण्डलके शाश्वत फलका भोग करूंगा ।।७।।
तब लोकान्तिक देवोंका आगमयुक्त कथन सुनकर स्त्रियोंसे पराङ्मुख दीक्षाके लिए उद्यत चन्द्रमाके समान मुखवाले कुम्भराजाके पुत्र वैश्रवणका इन्द्रने अभिषेक किया । 'बयन' यानमें बैठकर कुवलय (पृथ्वीरूपी) कुमुद के लिए पन्द्रमाके समान कामोंसे अत्यन्त विरक्त वह शरवनमें पहुंचे। जन्मके दिन अर्थात् अगहन सुदी एकादशोके दिन अश्विनी नक्षत्र में तीन सौ राजाबोंके साथ वह मोह बन्धनोंसे छूट गये । सार्यकाल सुतपमें स्थित हो गये और पार मानोंसे अंकित
४. AP कुमरो। ५. AP पोमरायकिरणारगं। ८. १. A सुबमोसियं । २. A"तिसईए; P"तसएप ।