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महापुराण सुविसुद्धे गम्भासए घणधारावरिसे कए। पढममासि पढमे दिणे आसिणिगइ हरिणंकणे। राणड जो हदओ वसवणो अहमिदओ। गयरूवेणवइण्णओ राणीगभि णिसण्णओ। सो सुरेहि अहिणदिओ फणिकिंणरणरचलिओ। णियाणं पसे अरे
वरिसकोडिसहसंतरे। मग्गसिरे तुहिणायरे सियएयारसिवासरे। आसिणिरिक्खे जायओ तित्थयरो हयरायओ। एक्कुणवीसमओ. इमो गरहवेण-व संजमो। अहि सित्तो अमरायले हरिणा पंडुसिलायले।
धत्ता-मल्लियमालागंधो जाणिओ॥
ईदेण मिणो मल्ली भाणिओ ॥६॥
अणुरथं पवियप्पिो जणणीहत्ये अप्पिओ। घणघरपल्लियपया। देवा णियवासं गया। बुहमुहपोमार्ण इणो वदह कालेणं जिणो। जाओ जायहवाहओ पंचवीसधणुदीहओ। आउसु तस्स सहासई वरिसह पणपण्णासहं ।
बरिससर बोळीणए आरूढो सुरपूणए । विलासिनियोंका समूह आ गया। धनधाराको वर्षा होनेपर सुविशुद्ध गर्भाशयमें चैत्र शुक्ला प्रतिपदाके दिन प्रातःकाल चन्द्रमासे युक्त अश्विनी नक्षत्र में रतिका अंकुर वह राजा वैश्रवण अहमेन्द्र गजरूपमें अवतीर्ण होकर रानीके गर्भ में स्थित हो गया। नाग, किन्नर और मनुष्योंके द्वारा बन्दनीय वह देवों के द्वारा अभिनन्दित किया गया। अरनाथके निर्वाण प्राम करनेके बाद एक हजार करोड़ वर्ष बीतनेपर मार्गशीर्ष सुदी एकादशीके दिन अश्विनी नक्षत्रमें कामदेवका माप करनेवाले तीर्थंकरका जन्म हुआ। उन्नीसवें तीर्थकर यह जैसे मनुष्य के रूपमें मूर्त संयम थे । इन्द्र के द्वारा सुमेरुपर्वतपर पाण्डुकशिलाके ऊपर वह अभिषिक्त हुए।
पत्ता-मस्तिकाकी मालाके गन्धसे युक्त जानकर इन्द्रने उन जिनकोमल्लि कहा ।।६।।
उसने सार्थक नाम समझा और माताके हाथमें उन्हें दे दिया। मेघोंके आडम्बर ( घटा) में पैर रखते हुए देवता अपने निवासगृह पले गये। जो अषोंके मुखरूपी कमलोंके लिए सूर्य हैं, ऐसे जिन भगदान समयके साप बढ़ने लगे। वह स्वर्णरूप हो गये एवं वह पच्चीस धनुष ऊंचे थे। उनकी बायु पचपन हजार वर्ष यो । सो वर्ष आयु पूरी होनेपर वह ऐरावतपर बारक हुए । वह
२. A सिणि । ३. A रामो यो । ४. AP शरदको । ५. A अस्मिणि । ७. १. A अणुभब and glors वाश्चर्यम्; T मगुनस्र्थ आश्चर्यम् । २. A अवहो । ३. A सुरथूणए ।