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महापुराण
[६५.४६थिउ गन्भतरालि जो धणवइ सो अहमिंदु पवेप्पिणु सुइमा । थुड अमरिंदचंदधरणिंदाहि सह दिवसहु लग्गिवि जखिदहि । बुट्टउं विसरिसेहि वसुहारहिं अट्ठारहपक्खंतरमेरहिं । परिवरता विणानंतर परिसकोडिसइसेण विहीणइ । थकाइ कंथुणाहणिवाणइ । पक्ष पत्थभायपरिमाण वरममासिरमासि सिसिरहु भरि पूसजोइ चवदहमद वासरि । घत्ता-सग्गममा खोहणु बुझ्यणदुरियहरु॥
णाणत्तयसंजुत्तम णासियजम्मअरु ॥४॥
सत्तम पकवट्टि हथपरमाउ संभूयउ जिणु अट्ठारहम। मंदरसिहरि तूरणिरघोसहिं पहदिन पुरंदरेहिं बत्तीसहिं । णामु फरेप्पिणु परमेसहु अक अम्महि करि अप्पिर आविवि पत। गड पोलोमीवर णियमंदिर बडइ पुण्णवंतु जिणु सुंदर। हेमच्छवितणु दहदहवणुतणु गहयारउ गुणगणरंजियजणु । एकवीसवरिसह सहसई सिसु लीलइ थिउ डिंभयकीलावसु । एचवीसेसहसई मंडलषह एकवीससहसई पुणु महिवह।
चवदह रयणई णव वि.णिहाण मुंजिवि पीणिवि दक्षिणे दीणहं । अन्तिम प्रहरमें रेवती नक्षत्रमें, जो धनपति, अहमेन्द्र था, शुभमति वह, वहसि व्युत होकर, गर्भमें आकर स्थित हो गया। अमरेन्द्र चन्द्र और धरणेन्द्रने स्तुति की। उस दिनसे लेकर यक्षेन्द्रने अठारह पक्षों तक असामान्य स्वर्णधाराकी वर्षा की। कुन्थुनाथके निर्वाणके बाप समयको परम्परा बोतनेपर एक हजार करोड़ वर्ष कम पस्यका चोपाई भाग जब पोष रह गया, तो शिशिरके भारसे भरे मार्गशीर्षके शुक्ल पक्षको चतुर्दशीको पुष्य नक्षत्र में
पत्ता-स्वर्गमार्गको क्षुब्ध करनेवाले, बुधवनोंके पापको हरण करनेवाले तीन ज्ञानों युक्त, जन्म और बुढ़ापेका जिन्होंने नाश कर दिया है ॥४॥
___ ऐसे शत्रुका मद दूर करनेवाले सातधे पक्रवर्ती और अठारहवें जिन उत्पन्न हुए। मन्दराचलके शिखरपर, बत्तीस इन्द्रोंने तूथों के निर्घोषके साथ उनका अभिषेक किया। परमेश्वरका 'बर' माम रखकर और घर आकर माताके हाथमें सौंप दिया। इन्द्र अपने घर पला गया। पुण्यवान सुन्दर जिन बढ़ने लगे। स्वर्णके समान शरीर कान्तिवाले उनका शरीर बीस धनुष प्रमाण ऊंचा था। और वह अपने गुणगणसे जनोंका रंजन करनेवाले थे। बाल कीराके वशीभूत वह शिशु इसकीस हजार वर्ष तक कीड़ामें रहा। फिर इक्कीस हजार वर्षों तक वह मण्डपति रहे फिर इक्कीस हजार पर्ष तक चक्रवर्ती राजा रहे । चौदह रत्न और नौ निधियोंका भोगकर धमसे
४. A वेवसह; P विवहह । ५. AP परिगड्ढ़ता। ६. AP विणि । ७. P सियमन्पसिर । ८...
सिसिहरभरि; P सिसिरहे भरि। ५. १.K मंदिरसिंहरि । २.Pएक्कवीसंसहसहस।