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महापुराण
बत्ता -- एराव चडिवि सुरावर सहसा पत्तु पुरंदरु || सहुं देवहिं णाणावहिं अरुड्डु लेखि ग संदरु || ३ ||
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ईदचं दखयरिंदफेणिंद हिं पुजि कुंद कुलकणियारहिं जपसंतीयरु संति भणेपिणु आणिवि भवहु अपिठ जणविहि हरि वरि पाण्डु व पणचित्र राज साहु पणविषि सदगु कवणं ग लक्खन रिसपरमाउ मद्दामहू वीससेणरायण वण्ण
में चक्का पितरुहु
धत्ता -- ते भायर चंद्द्विायरणिह परिणाविय ताएं || चिकण्ण बहुलायण जयजय पणिणाएं ॥ ४ ॥
पंचवीस वरवरिससड़ा सई जेहहु अपिय धरणि परिंदें
[ ६३. ३. १३
हाणि तहिं वंदारयवंदहिं । बलविलय चंपय मंदारहि । तं गुरु सुरगिरिसिहरु मुएप्पिणु । जिणवरसुरतरुसंभवधरणिहि । तेण ण को को किर रोमंचित । कार्ले जाउ डुबो दह दह तह दह दह धणुतुंग | दढरहु णाम अवरोहसमहु । जसदेवहि सो उप्पण्णहु | छणसत्तावीसंजोयणमुहु ।
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बोली कुमरति पयास | अप्पणु बद्धर पहु सुरिंदें |
धत्ता -- ऐरावतपर चढ़कर देवोंका स्वामी पुरन्दर शीघ्र वहाँ पहुँचा तथा नानारूपोंवाले देवोंके साथ अर्हन्त देवको लेकर मन्दराचल गया ||३||
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इन्द्र, चन्द्र, विद्याधरेन्द्र और नागेन्द्र मादि देवसमूहने वहाँ उनका अभिषेक किया तथा कुन्द, कुटज, कनेर, बकुल, तिलक, चम्पक और मन्दार पुष्पोंसे पूजा की। लोगोंको शान्ति देनेवाले होने से उन्हें शान्ति कहकर मन्दराचल शिखरको छोड़कर, गुरुको लाकर, जिनवररूपी कल्पवृक्षको उत्पन्न करनेकी भूमि माँको सौंपकर इन्द्र प्राकृतनटकी तरह नाचा । उससे कौन-कौन नहीं रोमांचित हुआ । इन्द्र प्रणाम कर स्वर्ग चला गया। समयके साथ जिन नत्रयौवनको प्राप्त हुए। स्वर्णरंगके वह मानो बालसूर्य थे। वह चालोस धनुष प्रमाण ऊँचे थे। एक लाख वर्षकी उनकी परमायु थी । दृढरथ नामका दूसरा अमेन्द्र था, वह भी विश्वसेन राजाकी दूसरी पत्नी यशस्वती से उत्पन्न हुआ | चक्रायुध नामसे वह प्रियपुत्र था । उसका मुख पूर्ण चन्द्रमा के समान था ।
घत्ता - चन्द्रमा और दिवाकरके समान दोनों भाइयोंका पिताने नगाड़ोंकी ध्वनि के साथ अत्यन्त रूपवतो राजकन्याओंसे विवाह कर दिया || ४ ||
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कौमार्यकालमें जब उनके पचीस हजार वर्ष बीत गये तो राजाने बड़े भाईको धरती अर्पित
४. १ इयरिरि । २. AP पायडु डुव । ३. AP यह तह दह । ४. AP लक्खु वरिसु परमाउ | ५. A अवरु बहसयम । ६ ।
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