Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 452
________________ संधि ६४ जिणगिरिपवरहणीसरिय बारहंगपाणियसरि ।। पुवमहण्णवगामिणिय पणवे प्पिणु वाईसरि ।। ध्रुवकं ।। जो मुवणि भणिउ छ?उ णिरास जो इंदियकूराहिहिं विराट । जो ण मरइ ण हवाइ कालरण घणमणतिमिरें ऑलिकालएण जो पगु गिरंजणु लुकवालु जो हियवएण णिषु जि णिराउ ! जो सत्तारहम जिणु विराम । जो' को जाणिजद कालएण । ण समंकित जो कंकालएण | जो ण करइ करि कत्तियकवालु । सन्धि ६४ जो जिनवररूपी र पर्वतरे निकली है, जो बारह अंगोंके जलकी नदी है, जो (चौदह ) पूर्वरूपो गाती और जावादी' ऐमो धादेवीको में प्रणाम करता हूँ। जो संसारमें छठे चक्रवर्ती हैं, जो हृदयसे नित्य वीतराग हैं, जो इन्द्रियरूपी क्रूर सांपोंके लिए विराड (वीराज - गरुड़ ) हैं, और जो सत्तरहवें वीतराग जिन हैं । जो काल के साथ न मरते है और न जन्म लेते हैं, जो काउको पमज्ञानसे जान लेते हैं, जो सघन मनरूपी अन्धकार, भ्रमरके समान कृष्णस्य और कलना ( चर्म ) से अंकित नहीं हैं, जो नग्न निरंजन और लोकपाल AU Mss, have, at the beginning of this barpdbi, this following stanza: बासडोद्धमरारबोहमक्क (?) चण्डोशमाश्रित्य यः कुर्वकाममकाण्डवाडवविषि विहीरपिछपिम् । हंसाहारमुगमणकलमनागीरपोनायकं काठमनित्वमहं कुतूहलवती सणस्प कीतिः वः ॥१॥ P reads'ग्मरावासमहक; Preads चण्डोसमासस्य; K reads wण्डीसमासृत्य Preads कुर्वरकाम'; A reads कुर्वरकी; P reada श्वेः । A reads हिडमण्डल । Pread ते । Khas marginal gloss on the starza: बलड एव बाबा, उहमसे भयानकः, आरवशम्मः तेन युक्तं उहुमतकं वाय यस्य हरस्य तम् । अकाण्ड मप्रस्तावेन । बद्रमाश्रित्य या कोतिर्षतते इत्यध्याहार्यम् । नादप्यई अतिशयेन निर्मला इति भावार्थः। कृतेः काम्यस्य । The stanza, all the iame, is not clear. १, १.A वो वाणिज्जा यह कालएण | २. A माइकाएग। ३. पमंकित । ४. A लुबकवाल । ५. AP कत्तियकराल ।

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