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महापुराण
[ ११.१२. १२धत्ता-वणि सिद्धमहागिरि गंपि हलि गंदणमुणिवरपयजुयलु ॥
वंदेप्पिणु बैंड उववासतउ चिण्णलं दुधरु गलियमलु ॥१२॥
१३
वजंगल पामे ससंहरा
सहि आयल करथइ तिउरणाहु । कताइ कुलिसमालिणिइ सहित अम्हई णियंतु मारेण महिउ । गउ णियपुरि णियपणइणि थवेवि कामावर पडियागज बलेवि। बेणि वि जणीय संचालियाउ णं से कुवलयमालियाछ । आयासि जाम धायद तुरंतु ता दिट्ठष्ट तेण कलत्तु एंतु। भत्तारचित्तगइ संभरंतु
ईसाकसायबसु विप्फुरंतु । णिकरणें दादुप्पेल्लियाउ भीएण वेणुवणि धलिया । परिहरियभीमवणयरभयास तहिं बेणि वि संणासे मुयाउ । घत्ता-ण कंदु ण मूलु ण फलु ण दलु अहिलसियर पनि पि वणि ।।
जो सच सासयसिद्धिया परमजिणेसर धरिवि मणि ॥१२॥
हउँ णवमी आईडलहु देवि हूई तुहु माणुसतणु मुएवि। में रह पवर फ्रुबेरणारि
दीसरजत्तहि दुक्खहारि। मंदरयलि दिवस परियतिक्खु दिहिसेणु णाम पणवेषि भिक्खु ।
पत्ता-हे सखो, सुनो सिद्धिमहागिरि पर्वतपर जाकर नन्दन नामक मुनिवरके चरणकमलोंको प्रणाम कर कठोर तथा मलनाशक उपवासतपस्पी व्रत ग्रहण किया ॥१२॥
वहाँ चन्द्रमाके समान कान्तिवाला त्रिपुरका स्वामी बचांगद नामका विद्याधर राजा कहींसे आया । हमें देखकर यह कामसे पीड़ित हो उठा। अपनी पत्नीको अपने घर छोड़नेके लिए वह गया और कामातुर वह शौन वापस आ गया। उसने हम दोनोंको इस प्रकार उठा लिया मानो हंसने कुवलयमालाको उठा लिया हो । जैसे ही वह आकाशमें दौड़ा कि उसने तुरन्त अपनी पत्नीको आते हुए देखा। अपने पसिको गतिको याद करते हुए और ईर्ष्या कषायके कारण तमसमाते हुए। देवसे प्रेरित निष्करुण उस भयावहने हमें घेणुवनमें फेंक दिया। जिन्होंने भीषण वनधरोंके भयको छोड़ दिया है, ऐसो हम दोनों वही संन्यासपूर्वक मर गयों।
पत्ता-शाश्वत सिद्धि देनेवाले योगीश्वर परम जिनको अपने मन में धारण कर हम लोगोंने उस वनमें न कन्द, न मूल, न फल और न दल कुछ भी न चाहा ॥१३॥
मैं नौवें स्वर्गमें देवी हुई। दू मनुष्य शरीर छोड़कर कुबेरकी रति नामको देवी हुई। दुःखका हरण करनेवाली नन्दीश्वरको यात्रामें मन्दराचलपर चरित्र में तीक्ष्ण तिसेन नामक मुनिको देखा । उन्हें प्रणाम फर हम लोगोंने पूछा कि सिद्धत्व ( मोक्ष ) कम प्राप्त होगा ! मुनिने
१३. १. A सहसबाह । २.
मालिणए । ३. AP यह पेल्लिया |