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-६२, १२.७!
महाकवि पुष्पदन्त निरसित आरटुउ वड़ियअमरिसर खेयर अवलोयह दसदिसर । महियलि कोलंतु रसु सुयणु दिद्वार उवविहर्ष णरमिहणु । उत्थल्लिवि घमि एउ खलु अणुहवउ विमर्माणणिरोहफलु । इय चिंतिवि कुद्ध अकारण विजेर पायालवियारणइ। तलि पइसि विचौलिय सेण सिल डोसिउ बहुवर थरहरिय इल। धत्ता-अरिवरु तणु व वियप्पिवि सिल चरणयले पपिधि ।।
मेहरहे परिपेक्षिय तासु जि मस्थाइ बलिय ॥११॥
संचलहुं ण सकाइ सो खयर आकंदह रखपूरियविवरु । तहु धरिणि भणइ उद्धरहि लहुं वे देहि बप्प पइभिक्ख महुं। मा मारहि रमणु मेहुँ वणस तुएं देखें पहरिविाषणउ । तं' णिसुणिवि करपल्लवि धरिवि कहिउ कारणे दय करिवि । पहु मणइ म मेल्लहि करुणसरु लइ अम्मि तुहारस एहु वरु । विहलुद्धारणि पसरियह रिस पिमुणहं मि स्वमंति महापुरिस ।
थिस वीलावसु ओणे ल्लमुहु णयलु अवलोइवि जायेदुह। ध्याकरणका विचार। जिसे ईर्ष्या बढ़ रही है ऐसा विद्याधर ऋद्ध हो उठा । वह चारों दिशाओं में देखता है। उसने धरतीतलपर क्रीड़ा करते हुए स्वजनोंसे रहित बैठे हुए मनुष्यके जोड़ेको देखा। में इस दुष्टको उछालकर फेंकता हूँ, मेरे विमानके निरोधका फल यह अनुभव करे यह सोचकर वह अकारण कुन हो उठा, पाताल विदारण विधासे तलमें प्रवेश कर उसने शिलातल चलायमान कर दिया । वधूवर सोल उठे और धरती हिल उठी ।
पत्ता-शत्रुको तिनकेके बराबर समझते हुए शिलातलको पैरसे चौपकर मेघरचने उसे उल्टा प्रेरित किया और उसोके मस्तकपर फेंक दिया ||११||
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___ वह विद्याधर चल नहीं सका। शब्दसे विवरोंको भरता हुआ वह रोता है। तब उसकी गृहिणी ( विद्याधरी) कहती है-"शीघ्र उद्धार कीजिए। हे सुभट, मुझे पतिको भोख दीजिये । प्रियकी हत्या मत कीजिए। हे देव, आप शत्रुओंका विदारण करनेवाले हैं।" यह सुनकर उसने दया कर कापण्यसे अपनी हथेलीपर धारण कर उसे निकाला। प्रभु मेघरथ कहते हैं-“हे मां, तुम करुण विलाप मत करो ये लो तुम्हारा वर" विकल जनोंका उद्धार करने में जिनमें हर्षका प्रसार होता है, ऐसे महापुरुष दुष्टोंको क्षमा नहीं करते। लज्जाके वशीभूत वह विद्याधर अपना मुख
५.A बात। ६. A पत्तथणु । ७. A पस्किवि एड: P स्लिमि एउ। ८.AP विवाण ।
९. P विजाइ। १०. A तेणुच्चइय सिल । ११. A रिवर । १२. A पस्मेिल्लिय । १२. १. A महं वण । २. AP देउ । ३. P हैं। ४. AP ओणुल्लमुह । ५. APणया । ६. A जायमुद्र ।