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महाकवि पुष्पदन्त विरचित कहइ जणणु पियवयणहिं तुट्ठउ महं धरि दासीसुउ णिकिट्टर । कंतु तुहारउ होइ ण दियवरु ऐ भणेप्पिणु गज सो णियघर । तहिं सिरिसेणु राउ परसिरमणि पदम सौहणंदिय तह पणइणि ।। बीय अणिदिये फाई भणिज्जइ जाहि र वि दासि व्व गणिज्जइ । ताह बिहिं मि कतिइ सुच्छाया इवधिदसेण सुय जाया । कुललंछण धरियमज्जायतु जंबूधूयइ साहिर रायहु । मा....ते हि सागरिका शणि मंदा मण्णिन ॥
ककसदंडे ताडिउ पुरवराउ गिद्धाडिउ ॥२६।।
सभाम सइ सुद्ध हथेप्पिणु थिय उवसमु हिय उल्लइ लेप्पिंणु । सदैम अमियगइ णामारिंजय आइय भिक्खहि चारण संजय । सिरिसेणे आहारु पयच्छित दिज्जतउ घरिणीहि समिच्छिष्ठ । चउदहमलपरिमुक्कु अकुच्छित रिसिहि पाणिवत्तेण पउिच्छिउ । भायणधरणाइयड सुधम्मत सञ्चयतणयइ किन सुहकम्मउ । चहुं वि सुकयबीउ ल लद्ध भोयभूमिपरमाठ णिबद्ध।
सेमररंगदलवट्टियपरबलु कोसंबीणयरीसु महाबलु। कारण उष्ण उच्छ्वासवाली बहूने पूछा । उसके प्रिय वचनोंसे सन्तुष्ट होकर पिता कहता है कि यह मेरे घर में नीच दासीपुत्र था। तुम्हारा पति ब्राह्मण नहीं है। ऐसा कहकर वह ब्राह्मण अपने घर चला गया। वहाँ नर-शिरोमणि श्रीषेण राजा था। उसको पहली पत्नी सिंहनन्दिता थी। दूसरी पत्नी आनन्दिता थी, उसके विषयमें क्या कहा जाये ? उससे रति भो दासोके समान समझी जाती थी। उन दोनोंके कान्तिसे सुन्दर इन्द्रसेन और उपेन्द्रसेन नामके पुत्र हुए। जम्बूकी कन्याने मर्यादाको धारण करनेवाले राजासे कुलकलंककी बात कही।
पत्ता-राजाने उसका अपमान किया, लोगों में वह चण्डालको तरह समझा गया। कठोर दण्डसे प्रताड़ित उसे उस प्रवरपुरसे निकाल दिया गया ॥२६॥ ।
सती सत्यभामा शुद्ध होकर अपने मन में शान्तभाव धारण कर रहने लगी। संयमधारी अमितगति और अरिंजय नामके दो चारण मुनि आहारके लिए आये । श्रोषेण राजाने उन्हें आहार दिया, देते हुए उसका दोनों पत्नियोंने समर्थन किया, चौदह प्रकारके मलोंसे मुक्त और अकुत्सित उस आहारको मुनियोंने अपने हाथरूपी पात्रसे स्वीकार कर लिया। बरतन आदि रखनेका जो सुधर्म है, वह सुकर्म सत्यक ब्राह्मणकी कन्याने किया। उन चारोंने पुण्यरूपी बोजको प्राप्त किया और भोगभूमिकी परम-आयुका बन्ध कर लिया। कौशाम्बी नगरोमें, जिसने युद्धके
२६. १. AP एम | २. P अणंदिय । ३. P साहियउँ । ४. A तेण वि खलु । २७. १. AP सच्वभाव । २. AP लएप्षिणु। ३. A सदणे but records a p: सणि था। ४. AP
अमियगय । ५. AP समरंगण ।