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महापुराण
[६१.२.२०चंदणवणंतम्मि पांदणमुणी जम्मि ।
णिम्मुकम्मम्मि पईसरिवि लहु तम्मि । घत्ता-अहिसिंचिवि पुजिवि परमजिणु वंदिवि भत्तिसमेग्यविज ।।
आहार सरीरु कि परिहरिवि यिहि मि परत्तु जि चिंतविउं ॥२॥
जणियपरपेसणसुणिरवेखु जं घोरसरायकसायसमणु तेरहमाइ कपिमणोहिरामि हुल अमियतेउ रविचूलु देश मणिचूलु णामु सिरिविजन तेस्थु को वणइ ताहं महापहार कालेपा जंबुदीवंतरालि वच्छावइदेसि पहायरीहि पीसेसकलाल उ मणुययंदु तह देविहि देउ वसंधरीहि आवेप्पिणु णंदावत्तणाहु
जंणिण्णासियभवबंधदुक्खु । तं कय तेहिं पाओधमरणु। सुरणंदिय गंदावसधामि । सस्थित णामें अवर वि णिकेउ । सुरवा जायज लक्खणपसत्थु । ते बे वि वीससायरसमार। इह पुम्वविदेह रमाविसालि। णयरिहि वणकीलिय किंणरीहि । णामेण थिमियसायरू णरिंदु। रविचूलु गम्भि थिउ सुंदरीहि । अवराइउ हुई थिरथोरबाहु ।
कुलमार्गमें ( राजगहो ) पर स्थापित कर, जिस चन्दनवनमें नन्दनमुनि थे उसमें प्रवेश कर, निर्मुक्तकर्म उसके पास शीघ्र
घत्ता-भक्ति से प्राप्य जिन भगवान्फा अभिषेक, पूजा और वन्दना कर, आहार और शरीरका त्याग कर दोनोंने परत्व (श्रेष्ठ तत्व ) का चिन्तन किया ॥२॥
जो अपने पराये प्रयोजनसे निरपेक्ष हैं, जिसने संसारके बन्ध और दुःखका नाश कर दिया है, जिसमें घोर कषायका शमन है, उन्होंने ऐसा प्रायोपमरण किया। सुन्दर तेरहवें स्वर्गमैं, देवोंके द्वारा आनन्दित नन्दावतं विमानमें अमिततेज रविचूलदेव हुआ। वहाँ एक और स्वस्तिक नामक विमान था, श्रीबिजय उसमें लक्षणोंसे प्रशस्त मणिचूल देव हुआ। उनके प्रभावका वर्णन कौन कर सकता है। वे दोनों बीस सागरकी आयुवाले थे। समय होनेपर अम्बूद्वीपके लक्ष्मोसे विशाल पूर्व विदेहमें वत्सकावती देशकी जिसके वनमें किन्नरियां क्रीड़ा करती हैं, नगरीमें मनुष्यश्रेष्ठ समस्त कलाओंका घर स्तमितसागर नामका राजा था । उसको देवी सुन्दरी वसुन्धराके गर्भ में वह देव आकर स्थित हो गया। नन्दावर्त विमानका वह स्वामी अपराजित नामसे स्थिर और स्थूल बांहोवाला पुत्र हुआ।
१०. पइसरवि । ११. P समुम्बधित । ३. १.A पावोगमरणु; P पाादगमरणु। २.A पहावरीहि । ३. अमियसायरु; P तिमियसायरु ।