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महाकवि पुष्पदन्त विरचित देवत्तणु माणिवि णरजाया कि पहरह उग्गामियघाया। तं णिसुणिवि कुमार हयछम्मा तन परेवि पयमूलि सुधम्महु । गय मोक्खहु णिक्खवियरोहहु अहमहागुणविरइयसोहछ। जो सिरिसेणु पुणु वि जो कुरुणा पढमकप्पि सो जाउ परामर । सिरिपहु सुरहरि णं ससहरसह हुय हरिणंदियज्ज विज्जुमूह । कुरुमणुयत्तणु माणिषि बहुमहु देवि अणिदिय विवि विमलप्पाहु । सुरु हूई पुर्ण भणि वयसह सञ्चमाम तहु फंत ससिप्पाह । पत्ता-जो सिरिसेणु महाइस कुरुणा सुरु लगाइच ॥
सो एवहिं तुहुं जायउ अमियतेस खगरायउ॥३१॥
Annanamamarnama
जा सा सइ पंचाणणणंदिय सा जोइप्पह घरिणि अपिदिय । पुण हुई सिरिविजउ वियाणहि सोचिणि सच्चभाम अहिणाणहि । जा सा धुवु सुतार सस तेरी सुरणरविसहरहिययवियारी। कविलु सुइरु हिंडिषि संसार भूयरमणकाणणि भयगारह। पविउलअइरावयणइतीरइ कोसियसावसमुत्तसरीरइ।
पवलवेयतवसिणियाइ जणियड सो मयसिंगु णाम सुट भणियस । पूर्वजन्मको प्रेमका परिपालन करनेवाली तुम्हारी मा हूँ। तुम देवत्वका भोग कर मनुष्य रूपमें जन्मे हो। घात उठाये हुए प्रहार क्यों करते हो?" यह सुनकर दोनों कुमार कोषका नाश करनेवाले सुधर्मा मुनिके चरणमूलमें तपका आचरण कर, जिसमें पापोंके समूहका क्षय हो गया है और जिसमें आठ महागुणोंको शोभा है ऐसे मोक्ष चले गये। जो श्रीषेण था और जो कुरुनर हुआ था वह प्रथम स्वर्गमें श्रेष्ठ देव हुआ-धीप्रभ नामक विमानमें श्रोप्रभ नामका । सिंहनन्दिता नामको रानी उसो स्वर्गमें विद्युत्प्रभ देव हुई। कुछ भोगभूमिके सुखोंको मानकर अत्यधिक तेजवाली देवी अनिन्दिता स्वर्गमें विमलप्रभ नामका वेव हुई। नतोंको सहते हुए ब्राह्मणी सस्पभामा शशिप्रभा ( शुक्लप्रभा ) नामकी उसको देवी हुई।
पत्ता-जो आदरणीय श्रीषेण था, कुरुनर और देव, वह स्वर्गसे आकर इस समय तुम अमिततेज नामक विद्याधर राजा हुए हो ॥३१॥
जो सती सिंहनन्दिता थी वह ज्योतिप्रभा नामको तुम्हारी गृहिणी है । और जो अनिन्दिता थो वह श्रीविजय हुई, यह जानो। और जो सत्यभामा ब्राह्मणी थी, उसे तुम सुर, नर और विषधरोंका हृदय विदारित करनेवाली तुम्हारी बहन सुतारा निश्चित रूपसे पहचानो। वह पुराना कपिल संसारमें लम्बे समय तक परिभ्रमण कर भयंकर भूतरमण काननमें विशाल ऐरावती नदीके किनारे जिसके शरीरका भोग कौशिक तपस्वीने किया है, ऐसी चपलवेगा नामक
२. AF माणवि । ३. A कुमारयशम्महु । ४. P विज्जापह । ५. A बहसुन। ६. AP बंभणि पुषु ।
७. अस्वभाव । ३२. १. AP सवभाव । २. P रमणि काणि ।