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भीम महाहवभरधुर जुत्तहूं बहिणीव इण्णिा लपपिणु चमरच पुरवइहि ससंदणु यि सोहाणि खियमिषं तहु सहसरसिपुतेण समेयष्ठ तहि आराहियमिर्गसंवग्गइ णं निवsहि महिमंडल रिद्धी एहि असोिस सिरिविजयह यि असणषो से पेसिय सहसघोस सयधोस सुषोस वि जं गय ते पषिडियमाणा
घसा- निर्यानि सुताराहार छाइच सरवरपंतिहिं
आसुरियहि लच्छिहि सुद धायउ धाराजियखयहुयब हजाल रिड भामरिविज्जामाह
महापुराण
[ ६०.२०. ३
पंचसयाई सहायई पुत्तहूं । विजयदेवया सुमरेणु । उसवणं । अमियते सिहरिहि हिरिवंसँहु । ग मैरुवे मारुयवेयर | संजयंतपढिमा पायग्गइ | षिज्ज महाजालिपि सहु सिद्धी । जागत मंगल सह सरायहं । जे से जुव दिसिहिं पणासिय । मेघोस अरिघोस असेस वि । तं मेहलंतु बाण फणिमाणा । सिरिविजयं दुरुवारs || गाइ उवह संतिहिं ॥२०॥
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गाइ कतें दंड निवेइङ । हउ विजएं पइसिवि करवालें । बिद्दि रूपहिं उत्थर सदवें ।
विद्याधर समूहको हटानेवाले रश्मिवेगादि, भीम महायुद्ध के भारमें जुते हुए पाँच सौ पुत्र सहायकके रूप में अपने बहनोईको दिये। उन्हें लेकर और विद्यादेवियोंका स्मरण कर केशवनन्दन ( श्रीविजय ) रथ सहित चमरचं च नगरके राजापर उबबन्ध अश्वपर बैठकर आक्रमणके लिए गया। हवा के समान गतिवाला अमिततेज अपने पुत्र सहस्ररश्मिके साथ आकाशमार्ग से अपनी शोभासे चन्द्रमाको जोतनेवाले होवन्त पर्वतपर गया। वहां जहाँ देवसमूहकी आराधना की जाती है, ऐसे संजयन्त मुनिको प्रतिमाके आगे उसे महाज्वाला नामको विद्या सिद्ध हुई, मानो राजाके लिए महिमण्डलकी ऋद्धि सिद्ध हुई हो । यहाँ ध्वजों और गजों सहित अशनिघोष तथा श्रीविजय युद्ध हुआ । अशनिघोष के द्वारा भेजे गये जो पुत्र थे वे रूड़कर दिशाओं में भाग गये । सहस्रघोष, शतघोष, सुघोष, मेघघोष और अरिघोष आदि सभी । जब वे खण्डित मान तथा नागके आकारके बाण छोड़कर चले गये
घत्ता — तब सुताराके अपहरण करनेवालेको दुर्वार समझकर श्रीविजयने तीरोंकी पंकि उसे इस प्रकार छा लिया मानो शान्तिथोंने उपद्रवको छा लिया हो ||२०||
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आसुरी लक्ष्मीका पुत्र इस प्रकार दौड़ा मानो कृतान्तने अपना दण्ड निवेदित किया हो । विजयने प्रवेश कर धाराप्रलयकी आगको ज्वालाको जीतनेवाली तलवारसे उसे मार दिया। शत्रु
३. A ओखंषि; P उद्धवें । ४. AP हिरिनंतहु । ५. A मम T मरुवेगें आकाशेन । ६. मृगं । ७. A मेहति । ८. AP णिएवि ।